पिछले महीने दीपावली में सुबीर संवाद सेवा पे आयोजित तरही मुशायरे के लिए ये ग़ज़ल कही थी। कुछ नए शेर जुड़े हैं और कुछ पुराने शेरों में थोड़ी सी और छेड़खानी कर के, आखिरकार ये ग़ज़ल आप से गुफ़्तगू करने के लिए यहाँ है।
(एक खूबसूरत सुबह गुप्त-काशी, उत्तराखंड की)
क़र्ज़ रातों का तार के हर सू
एक सूरज नया उगे हर सू
काढ देंगे सहर उजालों की
बाँध कर रात के सिरे हर सू
तेरे हाथों का लम्स पाते ही
एक सिहरन जगे, जगे हर सू
रात टूटी हज़ार लम्हों में
ख़ाब सारे बिखेर के हर सू
मेरे स्वेटर की इस बुनावट में
प्यार के धागे हैं लगे हर सू
चाँद को गौर से जो देखा तो
जुगनुओं के लिबास थे हर सू
खेल दुनिया रचे है रिश्तों के
जिंदगानी के वास्ते हर सू
चोट खाया हुआ मुसाफिर हूँ
साथ चलते हैं मशविरे हर सू
ख़त्म आखिर सवाल होंगे क्या?
मौत के इक जवाब से हर सू
9 comments:
केदारनाथ जी भी यहाँ विराजमान हो गये है। गुप्तकाशी में
अंकित एक एक शेर बहुत लगन और मेहनत से तराशे हुए हीरे की तरह बेजोड़ है...इसीलिए किसी एक की चमक दूजे से कम नहीं है...ऐसे शेर कहना किसी उस्ताद के बस की ही बात होती है...हम सबको यकीन है कि एक दिन तुम्हारा ये हुनर तुम्हें बहुत ऊंची पायदान पर ले जायेगा...और क्या कहूँ? गदगद हूँ.
नीरज
बहुत सुन्दर सृजन!
अंकित जी
तरही मुशायरे में अच्छी ग़ज़ल......
.
तेरे हाथों का लम्स पाते ही
एक सिहरन जगे, जगे हर सूँ
.
रात टूटी हज़ार लम्हों में
ख्वाब सारे बिखेर के हर सूँ
.
मेरे स्वेटर की इस बुनावट में
प्यार के धागे हैं लगे हर सूँ
.
इन तीन शेरोन की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम .... दाद क़ुबूल फरमाएं
खेल दुनिया रचे है रिश्तों के
जिंदगानी के वास्ते हर सूँ
.
चोट खाया हुआ मुसाफिर हूँ
साथ चलते हैं मशविरे हर सूँ
.
ख़त्म आखिर सवाल होंगे क्या?
मौत के इक जवाब से हर सूँ
Gazab ke ashaar hain! Wah!
खेल दुनिया रचे है रिश्तों के
जिंदगानी के वास्ते हर सूँ
.bahut hi badhiyaa
खेल दुनिया रचे है रिश्तों के
जिंदगानी के वास्ते हर सूँ
.bahut hi badhiyaa
मेरे स्वेटर की इस बुनावट में
प्यार के धागे हैं लगे हर सूँ
सुन्दर!
ati sundar post
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