वैसे आज जिस ग़ज़ल से आप मुखातिब हो रहे हैं वो आपके लिए नयी नहीं है, गुरु जी के ब्लॉग पे चल रहे तरही मुशायेरे में आप इससे रूबरू भी हो चुके होंगे मगर इसमें एक नया शेर है जिससे इस पोस्ट को लगाने का छोटा सा कारन मिल गया. इस ग़ज़ल का आखिरी शेर नया है.
जो लोरी सुना माँ ज़रा थपथपाये
दबे पाँव निंदिया उन आँखों में आये
चलो फिर से जी लें शरारत पुरानी
बहुत दिन हुए अब तो अमिया चुराये
खिंची कुछ लकीरों से आगे निकल तू
नयी एक दुनिया है तुझको बुलाये
मुझे जानते हैं यहाँ रहने वाले
तभी तो ये पत्थर मिरी ओर आये
किया जो भी उसका यूँ एहसां जता के
तू नज़दीक आकर बहुत दूर जाये
मैं उनमे कहीं ज़िन्दगी ढूँढता हूँ
वो लम्हें तिरे साथ थे जो बिताये
खुली जब मुड़ी पेज यादें लगा यूँ
के तस्वीर कोई पुरानी दिखाये
दुआओं में शामिल है ये हर किसी के
नया साल जीवन में सुख ले के आये
मैं आँखें मिला जग से सच ही लिखूं माँ
मेरी सोच मेरी कलम भी बताये
ग़ज़ल टहनियों पे नयी सोच खिल के
ख़यालों के पतझर से उनको बचाये