11 October 2012

गुरुदेव को जन्मदिन की शुभकामनाएं


कैमरा रोलिंग  
थ्री, टू ,वन  .......... एक्शन 

फिल्म सिटी, गोरेगांव, बम्बई (मुंबई) में एक धार्मिक सीरियल की शूटिंग चल रही थी। बात तकरीबन 1990 के दशक के आखिरी कुछ सालों में से किसी एक की है। क्योंकि सीरियल धार्मिक था, इसलिए चेहरे-मोहरे के साथ संवाद अदायगी पर भी ध्यान दिया जाना लाज़िमी ही था। अत: कलाकारों का चयन मध्य-भारत से किया गया जहाँ हिंदी अपने शुद्धतम रूप में विद्यमान है। इन चेहरों में कई चेहरे जाने-पहचाने से थे और कई अनजान से चेहरे अपनी पहचान बनाने को आतुर थे। मायानगरी की माया से उलझते-जूझते इन चेहरों की इस सीरियल से कई उम्मीदें भी जुडी थी। कोई इसी एक मौके को पाने की कब से तलाश कर रहा था, तो कोई अपनी तथाकथित इमेज को तोड़कर कुछ नया करने को बेचैन था, तो कोई इस डर में जी रहा था कि कहीं इसी में न टाइपकास्ट हो के रह जाए।

सीरियल के कुछ एपीसोड की शूटिंग के बाद अचानक सीरियल बंद हो गया और कई सपने सिर्फ सपने ही रह गए। अब फिर से काम की, पहचान बनाने की एक नई ज़द्दोज़हद शुरू करने का वक़्त इतनी जल्दी आ जाएगा ये शायद उन नए चेहरों में से किसी ने सोचा नहीं होगा। उन कई नए चेहरों में से एक नवयुवक पंकज पुरोहित भी कभी अपने इस हुनर के रंग को पढने की, तो कभी परिस्थितियों को समझने की कोशिश कर रहा था। कुछ-आध महीनों में अगर काम न मिले तो इंसान का मन कई बातें सोचने लगता है कि कहीं धीरे-धीरे ये वक़्त यूँ हीं न धोखा देता रहे, कई काम शुरू होके भी आगे बंद न पड़ जाएँ और भी बहुत कुछ.............. 



इन सारी बातों में से किसी एक बात को चुनना कोई आसान काम नहीं होता और अगर चुन लिया तो फिर उसे थाम कर आगे बढ़ना तो और मुश्किल काम है। क्योंकि फिर आपके सामने कई सवाल मुंह उठाये खड़े होते हैं क्यों भई वापिस क्यों आ गए, थोडा और रुक जाते वगैरह वगैरह। लेकिन सच्चाई तो यही है कि आपकी सोच, सिर्फ आपसे मिलनी चाहिए किसी और से नहीं. तो पंकज पुरोहित ने मुंबई से वापिस लौटना ही ठीक समझा और अपने शहर में ही कुछ काम करने की सोची। परिवार वालों से बात कर के एक छोटी सी फैक्ट्री की नींव जल्द ही रख दी गई।  फैक्ट्री ने एक साल तो बहुत अच्छा काम किया मगर दूसरा साल आते-आते मुनाफा कम होता गया और नुकसान का ग्राफ बढ़ने लगा और दूसरे साल का आखिरी पायदान छूते-छूते आखिर में फैक्ट्री पर ताला लग गया. पंकज पुरोहित अपनी ज़िन्दगी और किस्मत से कई सवाल कर रहा था मगर शायद जवाब ख़ुद अपने सही वक़्त के इंतज़ार में था।

खेत में बुवाई के वक़्त जब बीज डाले जाते हैं तो हर बीज में पौधे बनने का पूरा हुनर मौजूद रहता है मगर असली खेल परिस्थितियां करती हैं या यूँ कहें किस्मत में जो लिखा होता है वही होता है। सही मात्र में नमी, हवा और खाद एक बीज को खिलखिलाता सा पौधा बना देती हैं जबकि वही नमी, हवा और खाद ज़रा सा कम या ज़्यादा हो जाए तो दूसरे बीज को दिक्कतें भी देती हैं। लेकिन ख़ुद पे भरोसा कभी-कभी परिस्थितियों को भी बदल डालता है और इंसानी जज़्बा उनमे से एक है. पंकज पुरोहित ने फिर से साहस बटोरा, और आस-पास की परेशानियों का घेरा तोड़ कर अपने अन्दर छिपे एक दूसरे हुनर लेखन को निखारना शुरू किया। लेखन के साथ-साथ शहर में पी सी लैब के रूप में कंप्यूटर सम्बंधित शिक्षा देने के लिए एक छोटा सा ऑफिस भी खोला। दो बार ज़रूर मुश्किलें भारी पड़ी मगर तीसरी बार उनका सामना जब इस जिद्दी जज़्बे से हुआ तो उन्होंने भी झुकना पसंद किया. (वैसे पी सी लैब के शुरू होने की कहानी भी कम मजेदार नहीं है मगर वो अगली बार.)

आज यही पंकज पुरोहित जिसे आप लोग साहित्य में पंकज सुबीर कह के पुकारते हैं और मैं गुरुदेव अपनी लेखनी से नए आयामों को छू रहे हैं। गौर से देखें तो इस शख्स का सफ़र कहाँ से शुरू हुआ था और उसने कहाँ जाकर अपना नाम बनाया। अगर मुंबई में वो सीरियल चल पड़ता तो कहानी कुछ और होती, अगर वो फैक्ट्री चल पड़ती तो कहानी की दिशा शायद कुछ और होती। मगर इन मीठे-कड़वे अनुभवों से गुज़र के पिछले दोनों पड़ावों से अलग आज साहित्य जगत में वो जाना-पहचाना नाम हैं। आज उनको उनके जन्मदिन पर बहुत बहुत शुभकामनाएं। मेरी ईश्वर से यही दुआ है कि उनकी लेखनी यूँ ही नए शिखरों को छूती रहे, उनकी कलम से नई नई ढेरों कहानियां और उपन्यास यूँ ही बहते रहें।