आजकल भोपाल में डेरा जमाये हुए हूँ। पिछली पोस्ट में किये गए वादे के मुताबिक एक नयी ग़ज़ल के साथ हाज़िर हूँ, जो गुरुदेव के आशीर्वाद से कृत है.
हमारा हक़ गया, कहाँ
चलो ज़रा पता करें।
उठो कि कुछ नया करें।
ज़मीं को फिर हरा करें।
हमारा हक़ गया, कहाँ
चलो ज़रा पता करें।
जो प्यार से मिले उसे
मुहब्बतें अता करें।
न सूर्य बन सकें अगर
चराग बन जला करें।
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बुजुर्ग जो हैं कह रहे
जवां उसे सुना करें।
ख़ुशी के दाम हैं बहुत
ग़मों से जी भरा करें।
न लुप्त हो हँसी कहीं
मिला करें, हँसा करें।
तमाशबाज़ सोच में
अब इसके बाद क्या करें।
ये ज़िन्दगी है चाय गर
तो चुस्कियां लिया करें।
ख़ुशी के दाम हैं बहुत
ग़मों से जी भरा करें।
न लुप्त हो हँसी कहीं
मिला करें, हँसा करें।
तमाशबाज़ सोच में
अब इसके बाद क्या करें।
ये ज़िन्दगी है चाय गर
तो चुस्कियां लिया करें।