11 August 2008

खाई हैं ठोकरें....

खाई हैं ठोकरें तभी तो सम्हला हूँ आगे।
लड़ा हूँ ज़माने से और निकला हूँ आगे।

मुझको मुश्किलों ने बना तो दिया पत्थर,
जज़्बात जब कभी भी छुए पिघला हूँ आगे।

04 August 2008

ग़ज़ल - रात दिन ख़यालों में इक अजब खुमारी है

रात दिन ख़यालों में इक अजब खुमारी है।
नींद हमसे रूठी है, करवटों की क्यारी है।

जैसे तुम नज़र में हो, जिंदगी में आ जाओ,
राह तेरी देखे जो रूह वो बेचारी है।

ढूँढता क्यों रहता है, ख़ुद को मेरी आंखों में,
तेरे बारे में कहती हर ग़ज़ल हमारी है।