25 June 2009

दास्ताँ-ए-बारिश और चंद शेर

मुंबई में बारिश ने दस्तक दे दी है और मेरे घर पे कुछ खास अंदाज़ में दी है। अपने नए मेहमान का इस्तकबाल कुछ खास तरीके से किया जिसे वो शायद भुला ना पाए। हर शनिवार और रविवार को ऑफिस में काम करना मना है सीधे कहूं तो छुट्टी है। मैं इसी मौके का फायदा उठा कर अपने दोस्तों से मिलने निकल जाता हूँ, और वापसी होती है रविवार की रात को। दोस्तों के साथ रिमझिम बरस रही बारिश की बूंदों का लुत्फ़ उठाया तो बचपन की पुरानी यादें ताज़ा हो गई, याद आ गए वो दिन जब भीगने के बहाने ढूँढा करते थे और घर में भीगने में डांठ इंतज़ार करती थी. इसी मौज़ूँ पे लिखा हुआ एक शेर याद आ रहा है.........
"माँ की डांठ नही भूले,
जब बारिश में भीगे थे."
मलाड से वापसी पे मौसम बहुत सुहाना था, हवा ने ताज़गी की चादर ओढ़ ली थी और वो एक खूबसूरत एहसास दे रही थी। अपने ठिकाने की ओर बढता हुआ जब कमरे की सिम्त जा रही सीढियों पे चढ़ रहा था तो उनपे लिपटी हुई मिटटी और गुज़रे हुए लोगों के क़दमों के निशाँ गवाही दे रहे थे की आज बारिश ने लोगों को एक सुकून भरी साँस दी है, रोज़ की चिलचिलाती धूप से।
शायद बारिश ने मेरी ब्लॉग पे की गई पिछली पोस्ट पढ़ी होगी "घर में कोई मेहमां आने वाला है...." और सोचा होगा चलो इसके घर पे दस्तक दे ही दूँ, बेचारा किसी को पुकार रहा है। घर का दरवाजा खोला तो पहली नज़र में कुछ नज़र नही आया क्योंकि कमरे में बिखरा अँधेरा मुझे देखने की इजाज़त नही दे रहा था मगर जैसे ही रौशनी ने उसके इरादे रोके और आंखों को खुल के देखने की रास्ता दिया तो एक अलग ही मंज़र था उन बेबस नज़रों के सामने.............
........कमरे में आया हुआ पानी मुस्कुरा के कह रहा था कैसे हो, दो दिन मज़े में काट के आ गए अब और मज़े लो, वैसे ज़्यादा कुछ सामान तो अभी जोड़ा नही मगर जितना भी था वो मेरी ज़रूरत के हिसाब से बहुत था मगर पानी अपनी बाहों में भर के उन सब का बोसा ले रहा था और उसके शिकार हुई मेरी डायरी, मेरे सोने का गद्दा और कुछ बदनसीब कागज़। बस अब एक ही काम रह गया था पानी को बा-इज्ज़त उसका सही रास्ता दिखने का। वो रात तो लिखी थी फर्श के नाम और सोने का अब वो ही ठिकाना था..............मगर उसका भी एक अलग मज़ा था जो ज़िन्दगी भर एक याद बन के जिंदा रहेगा और आगे सम्हल के रहने की हिदायत देगा मुंबई की बारिश से।

इस पोस्ट को इसके अंजाम तक पहुँचने से पहले, दो आज़ाद शेरों को आपके हवाले कर रहा हूँ................

"बोलने के झूठ सब आदी हुए यारों,
बिन बनावट सच कहाँ बेबाक आए है
फ़ोन ने, -मेल ने लम्हें हसीं छीने,
प्यार का वो ख़त कहाँ अब डाक आए है।"
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18 June 2009

ग़ज़ल - चीज़ मुहब्‍बत है जादू की इक चाबी

सलाम दोस्तों,
फ़िर से आपके सामने हूँ एक नई ग़ज़ल के साथ जो गुरु जी (पंकज सुबीर जी) के आर्शीवाद से इस रूप में आई है।
चीज़ मुहब्‍बत है जादू की इक चाबी।
लहजा बदला, बातें भी बदली बदली।

उनसे मिलना सालों बाद करे पागल,
खत को खोल टटोल रहा बातें पिछली।

हाथ पकड़ जिसको सिखलाया था चलना,
काश वही बनता बूढे की बेसाखी।

बात चुनावों की है तो वे जागे हैं,
नेता क्या हैं जैसे मेढंक बरसाती।

घर की सूखी रोटी अच्छी बाहर से,
बात समझ में आई है अब अम्‍मा की।

ख्वाब सलोने छोड़ अभी, कोशिश तो कर,
मंजिल को पा जाता है बहता पानी।

घर में कोई मेहमा आने वाला है,
छत पे बैठा कौवा बोल रहा ये ही।

ग़ज़ल का आखिरी शेर "घर में कोई मेहमा आने वाला है, छत पे बैठा कौवा बोल रहा ये ही।" जो मैंने लिखा है का ख्याल ऐसे आया की हमारे वहां (उत्तराखंड) ये मान्यता है अगर छत की मुंडेर पे बैठ के कौवा अगर बोले तो वो कोई मेहमान के आने का सन्देश होता है.

03 June 2009

पढ़ाई ख़त्म, पहली नौकरी और भी बहुत कुछ पहला ...........

सबको मेरा सलाम,
जल्द आने का वादा किया था मगर देर हो गई मगर उस देर की कुछ वजह है। पहले जैसे दिन अब नही रह गए हैं, जब तक पुणे में पढ़ाई कर रहा था तब तक २४*७ नेट का साथ रहता था मगर जैसे ही पढ़ाई पूरी हुई और नौकरी लगी तो फ़िर सुख के वोदिन भी गए। मई १५, २००९ को वाशी, नवी मुंबई में National Co-operative Agriculture & Rural Development Banks' Federation Ltd. "केंद्रीय सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक महासंघ" में कार्यभार सम्हाला। कुछ दिनों तक तो अतिथि भवन में मजे किए मगर जल्द ही अपना ख़ुद का ठिकाना ढूँढने के लिए भाग दौड़ शुरू कर दी, कुछ मुश्किलों के बाद कामोठे में किराये का एक फ्लैट मिल गया। महीना ख़त्म होते होते पहली तनख्वाह भी मिल गई, जिसे पाकर एक अलग ही आनंद की अनुभूति हुई (जिसे लफ्जों में बयां करना मेरे बस की बात नही).
अरे ..............एक बहुत ज़रूरी बात तो बताना ही भूल गया, गुरु जी से नीरज जी का मोबाइल नम्बर लिया और उनसे बात हुई और मज़ा आ गया, जल्द ही उनसे मिलने भी जाऊंगा।
पिछले तरही मुशायेरे में हिस्सा नही ले पाया मगर इस बार पूरी तैयारी है।
एक नई ग़ज़ल के साथ जल्द ही आपका स्नेह पाने के लिए आऊंगा........................
......................फिर मिलेंगे जल्द ही।