एक ताज़ा ग़ज़ल आपके लिए पेश-ए-ख़िदमत है।
बहर :- बहरे मुतदारिक मुसमन मक्तूअ
रुक्न:- २२-२२-२२-२२
अभी आप से विदा लेता हूँ इस वादे के साथ कि एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ जल्द ही वापिस आऊंगा...............
बहर :- बहरे मुतदारिक मुसमन मक्तूअ
रुक्न:- २२-२२-२२-२२
बेचैनी का ये आलम भी.
पागल तुम दीवाने हम भी.
प्यार भरे तेरे इस ख़त में
लफ्ज़ चले आये कुछ नम भी.
मेरी साँसों में बहती है
तेरी साँसों की सरगम भी.
इक संदूक मिला खुशियों का
एक पोटली में कुछ ग़म भी.
साथ चले आये बारिश के
बीती यादों के मौसम भी.
तुमने आने की जिद क्या की
वक़्त चले अब कुछ मद्धम भी.
अभी आप से विदा लेता हूँ इस वादे के साथ कि एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ जल्द ही वापिस आऊंगा...............