29 October 2010

ग़ज़ल - अश्कों से सींची ये क्यारी लगती है

आज जिस ग़ज़ल को आप सभी से रूबरू करवा रहा हूँ, उसे कुछ रोज़ पहले बेलापुर में हुए, एक कवि सम्मलेन-मुशायरे में पढ़ा था. नीरज जी का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने बेलापुर में हुए इस कार्यक्रम के बारे में बताया और मुझे पढने का अवसर भी दिलवाया. उस कवि सम्मलेन-मुशायेरे में अज़ीम शायर, जाफ़र रज़ा साहब से भी मुलाक़ात हुई और उनके नायाब शेरों को सुनने का सौभाग्य भी मुझे मिला, मगर वक़्त का खेल देखिये, अभी कुछ दिन पूर्व ही वो शेरों-शायरी का खूबसूरत नगीना हम सभी से दूर उस ऊपर वाले की पनाह में चला गया है. मेरी ये ग़ज़ल, जाफ़र रज़ा साहब को समर्पित है.

(चित्र:- बन्दर-कूदनी, भेराघाट, जबलपुर)

अश्कों से सींची ये क्यारी लगती है
आँखों में ही रात गुजारी लगती है

दिल की बातों को उन तक पहुंचाने में
आँखों की थोड़ी फनकारी लगती है

चाँद-सितारों का आँचल शब ओढ़े पर
दुनिया को फिर भी अंधियारी लगती है

बोझ किताबों का लादेनन्ही सी जाँ 
उम्मीदों की इक अलमारी लगती है

भूखे पेट से पूछो तुम सूखी रोटी
कितनी मीठी, कितनी प्यारी लगती है

नाज़ुक रिश्ते आग पकड़ते हैं जल्दी
बातों-बातों में चिंगारी लगती है

14 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत गज़ल ...

kshama said...

Nihayat khoobsoorat gazal!

Unknown said...

बोझ किताबों का लादे मासूम उम्र
उमीदों की अलमारी सी लगती है

भूखे पेट से पूछो तुम सूखी रोटी
कितनी मीठी, कितनी प्यारी लगती है

ये अशआर बहुत ही अच्छे लगे अंकित जी, बधाई।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

ग़ज़ल बहुत अच्छी है जनाब.
दिल की बातों को उन तक पंहुचाने में
आंखों की थोड़ी फ़नकारी लगती है
वाह...बहुत अच्छा कहा है...मुबारकबाद

नाज़ुक रिश्ते आग पकड़ते हैं जल्दी
बातों बातों में चिंगारी लगती है...
सही मश्वरा है...अंकित जी

meemaansha said...

nayab gazal....khoobsurat alfaz

meemaansha said...

nayab gazal....khoobsurat alfaz

Rajeev Bharol said...

बेहद अच्छी.
अंकित, आप तो उस्ताद शायरों जैसा लिखते हो भाई..

अनुपमा पाठक said...

bahut sundar!

नीरज गोस्वामी said...

अंकित न जाने कैसे आपकी ये पोस्ट नज़र से चूक गयी...दरअसल ये पोस्ट उस दौरान आई जब मैं नेट से दूर अहमदाबाद में था...मुझे याद है बेलापुर के मुशायरे कवि सम्मलेन में लोगों ने और खास तौर पर शायरों कवियों ने तुम्हारी किस कदर तारीफ़ की थी उस रात मुझे तुमसे अधिक खुशी महसूस हुई...अब ऐसे नायाब शायर से जिसका ताल्लुक हो वो भला कैसे खुश न होगा...

ये गज़ल बेहद खूबसूरत है...इसमें वो सब कुछ है जो एक बेहतरीन गज़ल में होना चाहिए, लफ्ज़ जिस तरह से मिसरों में पिरोये हैं उसकी तारीफ़ के लिए क्या कहूँ सोच नहीं पा रहा...जिंदगी के कितने ही रंग समेटे गए हैं इसमें और कहन का अंदाज़ उस्तादाना है.

अश्कों से सींची क्यारी...आँखों की फनकारी...चाँद सितारों का आँचल...उम्मीदों की अलमारी...ऐसे अनूठे लफ्ज़ हैं जो आसानी से शायरी में पढ़ने को नहीं मिलते...

एक दिन तुम वतन के बेहतरीन शायरों में अपना नाम देखोगे...तुम्हारी कामयाबी के लिए दिल से दुआ मांगता हूँ...

नीरज

वीनस केसरी said...

अंकित भाई,

आपकी यह गज़ल जितनी बार पढता हूं उतनी बार आप ही की कही एक बात याद आ जाती है आप्ने कहा था
"वीनस अब हमें ऐसा लिखना चाहिये जो बेजोड हो,,,गज़ल लिखो तो ऐसी लिखो जिसका हर शेर शानदार हो, ये नही कि दो तीन शेर बढिया बन गये और बाकी के सब हल्के "

मुझसे तो अभी तक यह कारनामा नही हो सका आपको बधाई देता हूं कि अपने इस बात को अपने वज़ूद में ऐसे पिरोया है कि अब आपकी अधिकतर गज़ल के हर शेर लाजवाब होते हैं
आपको बहुत बहुत बधाई

प्रकाश पाखी said...

अंकित भाई,
वीनस से सहमत हूँ...वाकई आपकी गजल का हर अशआर परफेक्शन लिए हुए है...

"अर्श" said...

तुम्हे पढना सुनना हमेशा सुखद होता है अंकित ! फ़ोन पर यह ग़ज़ल सुन चुका हूँ ! हर शे'र सराहने लायक है और गौर करने लायक ! बेहद खुबसूरत अश'आर है ! शायद रज़ा साब के बारे में नीरज जी के ब्लॉग पर सुन दुःख हुआ ! अछि ग़ज़ल के लिए फिर से बधाई कुबूल करो !

अर्श

निर्मला कपिला said...

अंकित मेरे ब्लोग पर तुम्हारी पोस्ट अपडेट नही हो रही आज तुके से आयी हूं। क्या गज़ब लिखते हो। हर एक शेर लाजवाब। बधाई। जल्दी मे इतना ही। आशीर्वाद।

श्रद्धा जैन said...

Ankit .. bahut anuthe pryog dekhe is gazal mein .. shabdon ka bahut achcha pryog

bhookhe pet se poocho bahut achcha sher laga .. satay vachan