24 September 2010

ग़ज़ल - मैंने सोचा उसे, सोचता रह गया.

ऐसा लग रहा है कि एक मुद्दत हो गयी, कुछ कहें, कुछ लिखे इस ब्लॉग पर.......... कुछ धुंधला सा नज़र आता है कि इस ब्लॉग पे पिछली पोस्ट तकरीबन २ महीने पहले लगी थी, और तब से कुछ नहीं. वजह फिर वही पुरानी, घिसी-पिटी, उसी वक़्त की सख्ती, उसी वक़्त को बारहा कोसना।

इसी दरम्यान ऑफिस के काम के सिलसिले में 'श्री लंका' भी जाना हुआ, घूमना फिरना तो ज्यादा हुआ नहीं इसलिए यात्रा वृतांत क्या लिखूँ ......... जितना भी श्री लंका को देखा, समझा और जाना, उससे बहुत खूबसूरत देश लगा, वहां के लोग बहुत अच्छे लगे. 

एक छोटा देश, जिसकी आबादी मात्र  २ करोड़ है, ये मात्र इसलिए क्योंकि तकरीबन इतनी आबादी तो मुंबई में ही होगी।  बाहर घूमने के लिए जब कोलम्बो में मॉल, सड़कों और गलियों की सैर की तो शुरू में लगा कि आज शायद शहर बंद होगा, मगर फिर पता लगा ये तो आम है, किसी आम दिन की तरह ...... अब मुंबई की भीड़ देखने के बाद अगर कहीं किसी और जगह जब कुछ कम लोग दिखते हैं तो आँखों को कुछ खटकता सा लगता है.

आप सब के लिए उन गुज़री यादों को सहेजे हुए एक फोटो छोड़ जा रहा हूँ जो मोबाइल फ़ोन से गाले नामक जगह में एक पर्वत से खींची गयी है। ये वो पर्वत है जिसे लोकात्तियों एवं पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी द्वारा हिमालय से लाया गया था, जिसे संजीवनी पर्वत के नाम से विख्याति मिली। कहते है कि आज भी यहाँ इस पर्वत पे संजीवनी और उसके अलावा भी कई अमूल्य और अचूक जड़ी-बूटियाँ उपलब्ध हैं।


इन बातों से आगे बढ़ते हुए एक ग़ज़ल आप सब के लिए वैसे तो ये ग़ज़ल थोड़ी पुरानी है, सीहोर में हुई नशिस्त में सुनाई थी तब से वीनस पीछे पढ़ा हुआ था कि ब्लॉग पे फिर से लगा दो।

बहरे मुतदारिक मुसमन सालिम (२१२-२१२-२१२-२१२)

रात भर ख़त तेरा यूँ खुला रह गया।
जैसे कमरे में जलता दिया रह गया।

भूख दौलत की बढती रही दिन-ब-दिन,
आदमी पीछे ही भागता रह गया।

छीन के ले गई मुझ से दुनिया ये सब,
बस तेरी याद का आसरा रह गया।

ख़्वाब की ज़िन्दगी क्या है किसको पता?
एक पूरा हुआ, दूसरा रह गया।

पास आ तो गए पर न वो बात है,
कुरबतें तो बढ़ी, फासला रह गया।

क्या बताऊँ "सफ़र", उसके बारे में अब,
मैंने सोचा उसे, सोचता रह गया।

******************


तो ये थी जनाब मेरी ग़ज़ल और जाते जाते आप सब के लिए छोड़ जा रहा हूँ जगजीत सिंह साहब की रेशमी आवाज़ में इस "फूल खिला दे .............." ग़ज़ल को। जिसे उन्होंने काफी वक़्त बाद किसी फिल्म में गाया है, शकील आज़मी साहब की लिखी हुई ये ग़ज़ल रूप कुमार राठोड के संगीत में लयबद्ध है. फिल्म का नाम है "लाइफ एक्सप्रेस". तब तक आप भी अपने आप को भिगोइए इस ग़ज़ल में।


आप इस ग़ज़ल को यहाँ से डाउनलोड भी कर सकते हैं - http://www.divshare.com/download/12639002-7e3

10 comments:

नीरज गोस्वामी said...

इतनी मुद्दत बाद मिले हो...किन सोचों में गुम रहते हो...???
गुलाम अली साहब की आवाज़ में गयी ये ग़ज़ल आज आपके ब्लॉग पर आ कर याद आ गयी...
खैर देर आयेद दुरुस्त आयद...आये तो धमाकेदार ग़ज़ल के साथ हो...मतला तो भाई तुमको एक शानदार पार्टी देने की फरमाईश कर रहा है...देर तक याद रहेगा...बेहतरीन...
लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करो और लिखने में इतनी देर मत किया करो..

नीरज

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पोस्ट और रचना के साथ
डिवशेयर पर लगाया गीत भी अच्छा है!

गौतम राजऋषि said...

अभी भी मेरे मोबाइल पर सेव है उस नसिश्त की रिकार्डंग....कई-कई बार सोचता हूं कि तुम अभी से, इस उम्र से इतने लाजवाब शेर कह रहे हो...आगे जाने क्या कयामत ढ़ाओगे..."गर हुआ पूरा इक दूसरा रह गया" पढ़कर फिर से ऐसा सोचने लगा :-) ।
और मक्ता तो उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़....

"अर्श" said...

उस शाम की नशिष्ट में खुद तुमसे सुन चुका हूँ यह ग़ज़ल और अब भी उसी खुमारी में डूब जाता हूँ , फिर सीहोर से भोपाल तक के सफ़र में दुबरा तुमसे सुनना रोमांचित कर गया था ! मतला वाकई बेहद उस्तादाना ! छीन के ले गई / क्या है किसको पता / साथ में मक्ता भी बेहद पसंद आये ... जोरे कलम और बढे !

अर्श

daanish said...

"पास आ तो गए, पर न वो बात है
कुर्बतें तो बढीं, फासला रह गया "

अंकित 'सफ़र' के क़लम से निकले
अश`आर पढ़ना
मतलब
ग़ज़ल के खूबसूरत सफ़र पर गामज़न हो जाना
हर शेर अपनी मिसाल आप.... !
हुज़ूर ,,,
आपको सलाम ,,,
आपकी खूबसूरत शाईरी को सलाम
मक्ता तो जानलेवा है,
अकेला मिसरा ही लाजवाब
"मैंने सोचा उसे, सोचता रह गया " वाह-वा !!

KK Yadav said...

खूबसूरत शेर और शानदार गीत...बढ़िया लगा.




________________
'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.

'साहिल' said...

खूबसूरत ग़ज़ल ! उम्दा !

निर्मला कपिला said...

श्रीलंका की सैर की बहुत बहुत बधाई। अंकित की गज़ल पर कुछ कहूँ अभी वहाँ तक नही पहुँची। हर एक शेर लाजवाब बस इतना ही कहूँगी। बधाई और आशीर्वाद।

Pawan Kumar said...

अंकित
दोस्त पूरी ग़ज़ल बेहतरीन बन पड़ी है......मगर ये शेर खास पसंद आया
पास आ तो गए पर ना वो बात है,
कुरबतें तो बढ़ी फ़ासिला रह गया...... !
उम्दा शेर वाह वाह

Unknown said...

अंकित जी, बेहतरीन ग़ज़ल।
दौलत के पीछे भागता रह गया,
ज़िंदगी एक ख्वाब है,
बस तेरी याद का आसरा रह गया के तो क्या कहने! आदमी की तबियत बदलने को काफी हैं अशआर आपके।