01 December 2016

ग़ज़ल - इस लम्हे का हुस्न यही है


आँखों में फ़रयाद नहीं है
यानी दिल बर्बाद नहीं है

मुझ को छोड़ गई है गुमसुम
ये तो तेरी याद नहीं है

तुम बिन मुरझाये से हम हैं
जैसे पानी खाद नहीं है

इस लम्हे का हुस्न यही है
के ये इसके बाद नहीं है

उसने आह भरी तो जाना
दर्द मेरा बेदाद नहीं है

नींद खुली तो ढह जायेंगे
ख़्वाबों की बुनियाद नहीं है

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फोटो - साभार Korekgraphy

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