मैंने अपनी पिछली रचना में भारी गलती की थी, एक मायने में अगर वो गलती नही करता तो इतनी जल्दी गुरु जी से बात करने का सौभाग्य नही मिल पाता। उसी की हुई गलती को सुधारने की कोशिश करने की मैंने कोशिश की मगर वो हो ना सका और एक नई ग़ज़ल बनी। मगर इस ग़ज़ल का एक शेर उस पुरानी ग़ज़ल का ही ख़याल है। इस ग़ज़ल को सही रूप में लाना गुरु जी के बिना सम्भव नही था.
बहर २२१२-२२१२-२२१२मुस्तफएलुन मुस्तफएलुन मुस्तफएलुन
मिल के नज़र झुक जाए जब मैं क्या कहूं.
मुश्किल बड़े हालात अब मैं क्या कहूं.
मेरी नज़र पढ़ ना सकी तू दिलरुबा,
खामोश रहने का सबब मैं क्या कहूं.
सागर मुहब्बत का कहीं कम ना पड़े,
दिल है मेरा सहरा तलब मैं क्या कहूं.
तुम हमसफ़र बन के चलो उस मोड़ तक,
इक याद बन जाए गज़ब मैं क्या कहूं.
इस इश्क ने जादू न जाने क्या किया,
कटती नज़र में रात अब मैं क्या कहूं।
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[गुरु जी (पंकज सुबीर जी) को समर्पित, जिनके बिना इसका बनना सम्भव नही था]
6 comments:
जब गुरू जी ने खुद ही देख कर संवार दी है तो अपनी क्या हिमाकत कि कुछ कहूं
..बहर तो अब एकदम चुस्त है,मुझे लगता है अंकित अब आप समझ गये हो कि हम अपने मनमर्जी से कोई बहर नहीं खड़ी कर सकते हैं
कोशिश जारी रहनी चाहिये बस और फिर गूरू जी का आशिर्वाद तो है ही.
तीसरा शेर मुझे बहुत पसंद आया.
mujhe last ke do sher bahut achhe lage
Aapko pata hai ankit wahi khyaal kyu nahi likhe gaye kyuki koi bhi kalakaar same cheez dubara nahi kar pata
yahi uski kala hai yahi uski creativity hai
wo hamesha kuch naya kuch behtar kuch sunder karta hai
badhayi
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
अंकित जी आपके अथक प्रयास और गुरु जी के आशीर्वाद से एक नायब ग़ज़ल बन पड़ी है बहोत खूब ढेरो बधाई आपको....
अर्श
SUNDERTAM................wah
अंकित मुबारक हो...बहुत खुश हूँ मैं...वो लाजवाब शेर तुम्हारा हासिले गज़ल शेर तरही मुशायरे का...
बहुत-बहुत बधाई
कमाल का लिखा है तुमने।
और जैसा कि गुरू जी ने कहा कि बहुत दिनों से तुमने कुछ नहीं लगाया है
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