21 November 2009

एक लिफ़ाफ़े में रक्खी हैं मिसरी सी यादें

देखिये कितना कहा जाता है...
यूँ तो लिखने को बहुत कुछ है मगर शायद सब न समेट पाऊँ। वैसे आप लोगों को ये ख़बर तो होगी ही कि मैं आजकल भोपाल में हूँ और सीहोर में भी उपस्थिति दर्ज़ करवा रहा हूँ। गुरु जी से मिलना किसी सपने के सच होने जैसा है और उस पे ढ़ेर सा प्यार जो मिला है उसे लफ़्ज़ों में ढ़ालने में डर लग रहा है की कहीं कुछ छूट ना जाये। 

३१ अक्टूबर २००९ का दिन मेरे लिए कुछ ज्यादा ख़ास है, शाम को भोपाल से सीहोर के लिए निकल पड़ा था और घंटे भर के सफ़र के बाद गुरु जी से भेंट..........
कुछ वक़्त ही बीता था और गुरु जी ने पहले से तय कार्यक्रम के तहत "नव दुनिया" में साक्षात्कार करवा दिया, उसकी एक झलक यहाँ देखिये, मेरा पहला साक्षात्कार था और वो भी एक्सटेम्पोरे की शक्ल में जो भी दिल कह पाया लफ़्ज़ों में ढ़ाल दिया। 
इस तरफ़ साक्षात्कार का पूरा होना था और दूजी ओर तैयार था दूसरा सरप्राइज .....कवि सम्मलेन........मेरी रश्क़ करने वाली किस्मत देखिये, मोनिका हठीला दीदी का इसी वक़्त सीहोर आना मेरे लिए ख़ास बन पड़ा। वैसे विस्तृत प्रस्तुति आप गुरु जी के ब्लॉग पे पढ़ ही चुके होंगे और अगर नहीं पढ़ा है तो यहाँ पढ़े
अब जिसको रश्क़ करना वो बिना रोकटोक करे। अगला दिन यानी कि १ नवम्बर २००९, गुरु जी से लम्बी गुफ़्तगू का दौर चला, ढ़ेर सारी बातें हुई और बातों ही बातों में कई बातें सीखने को मिली। साथ ही साथ परी और पंखुरी का नटखट साथ मिला जिसमें ख़ूब सारी मस्ती घुली थी जिस ने मुझे मेरे बचपन की ओर वापिस धकेल दिया, दोनों बहुत-बहुत प्यारी हैं और उन के वक़्त कब गुज़रा, पता ही नहीं चला। 
 
                         ***परी***                                         ***पंखुरी*** 



इस ख़ास मुलाकात ने नये नए दोस्त सोनू, सनी, सुधीर भी दिये। कल यानी २० नवम्बर को परी का जन्मदिन था, वो भी साथ ही सेलिब्रेट किया। इन सब यादों को ज़िन्दगी की डायरी में सहेज के रख लिया है। 

7 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah...

Badhaiiiiii....+ Shubhkamnae

नीरज गोस्वामी said...

जरा लौट के आओ वापिस अंकित वाशी में...पूरा का पूरा लिफाफा ही न चुरा लिया तो नाम बदल देना...एक एक पल का हिसाब लूँगा...तैयार रहना..
नीरज

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इस लिफाफे को संभाल कर रखिएगा।
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सिर पर मंडराता अंतरिक्ष युद्ध का खतरा।
परी कथाओं जैसा है इंटरनेट का यह सफर।

"अर्श" said...

क्या बात है अंकित मियाँ बस लिफ़ाफ़े से एक चिठ्ठी निकाली और
ठेल दी सबके सामने , पूरा का पूरा ख़त पढो भाई... हम ऐसे खुशनसीब
तो नहीं के गुरु जी के शरण में ऐसे रहे मगर जब तुम हो तो और भी
बातें कहो भाई ... हमसे कुछ ना छुपवो... इंतज़ार रहेगा तुम्हारा


अर्श

कुश said...

लिफाफा संभाल कर...

कडुवासच said...

.... प्रसंशनीय !!!!!

गौतम राजऋषि said...

अरे दिलचस्प पोस्ट अंकित...पता नहीं कैसे छूट गयी थी।

कितना जल-भुन रहा हूँ, काश कि बता पाता तुम्हें!