आजकल भोपाल में डेरा जमाये हुए हूँ। पिछली पोस्ट में किये गए वादे के मुताबिक एक नयी ग़ज़ल के साथ हाज़िर हूँ, जो गुरुदेव के आशीर्वाद से कृत है.
हमारा हक़ गया, कहाँ
चलो ज़रा पता करें।
उठो कि कुछ नया करें।
ज़मीं को फिर हरा करें।
हमारा हक़ गया, कहाँ
चलो ज़रा पता करें।
जो प्यार से मिले उसे
मुहब्बतें अता करें।
न सूर्य बन सकें अगर
चराग बन जला करें।
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बुजुर्ग जो हैं कह रहे
जवां उसे सुना करें।
ख़ुशी के दाम हैं बहुत
ग़मों से जी भरा करें।
न लुप्त हो हँसी कहीं
मिला करें, हँसा करें।
तमाशबाज़ सोच में
अब इसके बाद क्या करें।
ये ज़िन्दगी है चाय गर
तो चुस्कियां लिया करें।
ख़ुशी के दाम हैं बहुत
ग़मों से जी भरा करें।
न लुप्त हो हँसी कहीं
मिला करें, हँसा करें।
तमाशबाज़ सोच में
अब इसके बाद क्या करें।
ये ज़िन्दगी है चाय गर
तो चुस्कियां लिया करें।
18 comments:
आपकी ये पंक्तियाँ दिल को बहुत भायी
तो मोटरसाइकल से सफ़र का आनंद लिया जा रहा है और जी फोटो तो है ही कमाल का
बेटा अच्छा लिखते हो, बधाई स्वीकार करो, वैसे हमाने सुना है अवध में चराग को चिराग़ कहते हैं, हम कभी गये तो नहीं अगर गये तो ठीक-ठीक शब्द तुम्हें बतायेंगे
अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
एक एक शेर ज़िन्दगी का नायाब फ़लसफ़ा लगता है..
तो जनाब आजकल जबलपुर घुमा जा रहा है.. धुआधार की तो बात ही अलग है.. भेढ़ाघाट पर बोटिंग के दौरान कमेंट्री सुनी या नहीं.. ?
बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजी बेहतरीन रचना, बधाई ।
मेरी सबसे पसंदीदा बह'र पे बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल कही है अंकित तुमने ... सारे ही शे'र बोलते हुए है मतला खुद झुमने पर मजबूर कर रहा है और अगर ऐसा होता है तो आप समझो के ग़ज़ल किस ऊँचाई पे है ... गुरु जी के सानिध्य में ग़ज़ल की बहुत ही बढ़िया परवरिश की है तुमने ... और गुरु जी के आशीर्वाद के बाद तो और भी खिल के आयी है .. गज़लें और कहो क्युनकेगुरु जी के पास हो और वाजिब भी यही है के ज्यादा कहोगे तो ज्यादा सीखोगे ... अगली ग़ज़ल के इन्त्ज़ाr में रहूँगा ... साड़ी तस्वीरें भी अछि हैं ... बधाई
अर्श
अन्कित भई छोती बहर मे बहुत सधी हुइ गजल कही है
सच कहू तो मुझे कोइ खास शेर खास पासन्द नही आया मगर पूरी गजल पढ्ने पर अलग ही लुत्फ़ दे रही है और कोइ शेर हल्का नही लग रहा है
जबलपुर मे तो बहुत सी जगह है घूम्ने लायक (ऐसा सुना है देखा नही :()
वीनस
Wahwa...
मेरी बात पर हँसना मत। आपकी इस ग़ज़ल के मीटर (जैसा मुझे समझ आया 'मुफाईलुन, मुफाईलुन') ने जयशंकर प्रसाद जी के लिखे एक अमर गीत की याद ताजा कर दी:
'हिमाद्रि तुंग श्रंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा स्मुज्जवला स्वतन्त्रता पुकारती
अमत्य वीर पुत्र हो दृढ़प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढे चलो बढे चलो।
'
अच्छे संदेशात्मक आशआर हैं। आपका उपनाम मक्ते के लिये बहुत फिट है कोशिश करें तो ग़ज़ल को परिभाषा के अनुसार पूर्णता मिलेगी। जैसे कि आपकी इस ग़ज़ल में सरलता से आ सकता है:
'सफर' ये जिन्दगी का तै,
खुशी-खुशी किया करें।
तिलक राज कपूर
hmmm.. badhiya likha hai..
खूबसूरत चित्रों से सजी आपकी ग़ज़ल भी लाजवाब है .......... पका हुवे पेड़ की तरह आपकी ग़ज़ल का हर शेर कमाल का है .......
बहरे हज़ज मुरब्बा मकबूज़...आहा, एक मुश्किल बहर पर लाजवाब ग़ज़ल अंकित।
अभी न जाओ छोड़्कर
कि दिल अभी भरा नहीं
की तर्ज पर गुनगुना उठा इसे।
सारे शेर जबरदस्त हैं....और तस्वीरें...खूब फ़ब रहे हो बाइक पर।
बहुत खूब अंकित जी
बहुत -२ आभार ...........
ख़ूबसूरत प्रस्तुति
बहुत मुश्किल बहर पर कसी हुई गजल...गौतम भाई से सहमत.आदरणीय तिलक राज कपूर साहब का आशीर्वाद प्रेरणा दायक है..और सही कहा है 'सफ़र' मकते में सही फिट है..
एक सुन्दर गजल जिसके सभी के सभी शेर प्रभावशाली हैं खासतौर पर "न सूर्य .... जला करें" कुछ खास है जो प्रेरणास्पद है यदि सूर्य नही भी बन सके तो पछताने की बात नही है अगर जज्बा है कुछ कर गुजरने का तो चराग बन कर भी उजाला किया जा सकता है।
ठीक इसी तरह " न लुप्त ... हंसा करें" ये शेर भी बेहद सारगर्भित है जो ये बंया कर रहा है कि आज के वर्तमान हालात में लोगों के पास हंसने-हंसाने का वक्त नही है हर कोई अपनी-अपनी जुगत में लगा हुआ है फ़िर भी प्रयास किया जाये तो हंसा और हंसाया जा सकता है।
प्रभावशाली गजल है सभी की सराहना मिलेगी, बधाई !!!!!!
हर शेर खूबसूरत
हर शेर में नए सन्देश नयी चेतना
जिंदगी का फलसफा
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है
बहुत बढ़िया गज़ल है.. मैंने अब तक पढ़ी क्यों नहीं थी?
मतले से मकते तक का सफ़र ऐसा है जैसे भेढ़ा घाट पर चांदनी रात में नौका विहार का...जैसे जैसे नाव आगे बढती है खूबसूरत मंज़र सामने आते जाते हैं...हर शेर कारीगरी से तराशा हुआ है...गौतम के कहने पर इसे अभी न जाओ छोड़ कर ...की तर्ज़ पर पढ़ा तो आनंद आ गया...ये इतनी पुरानी पोस्ट है और मेरी नज़रों से नहीं गुजरी..हैरत है...मैं इन दिनों जयपुर में हूँ जून के मध्य वापस लोटूंगा तब बारिशों के सानिध्य में मिलते है और खोपोली के खुशगवार मौसम का मज़ा लेते हैं...खुश रहो.
नीरज
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