18 June 2010

मुद्दतों से मुद्दई ये मुलाक़ात लिख रहा था

यूँ तो इस बात को या कहें मुलाक़ात को बराबर २ हफ्ते होने वाले हैं मगर मेरी इस देरी से इस पर कोई फ़र्क नहीं पढने वाला है. मुंबई में झमाझम बारिश शुरू हो चुकी है, जिस बात का ज़िक्र पिछली पोस्ट में किया था, हाँ वो मानसून वाली फिल्म , हाँ वो लग चुकी है और लोग आनंदित भी हैं और परेशान भी.
लौटते हैं मुद्दे पर, किसी ने ठीक ही कहा है और जिसने ये कहा है ये पोस्ट भी उसी के बारे में है कि "मुंबई में अच्छे इंसान और अच्छी हिंदी की किताबें मिलना बहुत मुश्किल है", अगर ये मिलते भी हैं तो कुछ मेहनत के बाद नहीं नहीं काफी मेहनत के बाद या फिर आपकी किस्मत के सितारें नक्षत्रों के अच्छे दोस्त हो तब ही ये मुमकिन है, मैं नहीं जानता मेरे साथ कौन सा चमत्कार हुआ इनमे से या फिर वो कुछ और ही था मेरी सोच समझ से परे...............

दिनांक ४ जून, २०१० को ठीक ४ बजकर ५३ मिनट पे मेरे सेल-फ़ोन पर नीरज जी की कॉल की दस्तक हुई और बात हुई के बहुत दिन हो गए ब्लॉग और फ़ोन पे बतियाते अब आमने-सामने मिला जाए और दिन मुक़र्रर हुआ अगला दिन यानी ५ जून, २०१०, जगह खोपोली, मुंबई-पुणे रास्ते पे बसा एक खूबसूरत नगर.
बस फिर क्या, पहुँच गए खोपोली नीरज जी से मिलने, अब नीरज जी के बारे में कुछ कहूँगा तो लफ्ज़ कहेंगे कि बस इतना ही अरे ये तो तुमने इनके बारे में बताया ही नहीं, अरे तुम ये भी कहना भूल गए ................. इसलिए एक सुझाव है कि आप भी इनसे ज़रूर मिले वर्ना समझ लीजिये के कुछ अधूरा ही लगेगा और रहेगा भी.

नीरज जी से मिलने के साथ ही साथ मुलाक़ात हुई उनके द्वारा संजोये हुए किताबों के जखीरे से, जो उनके ब्लॉग पे संचालित किताबों की दुनिया की बुनियाद है, दिन तो हसीं हो ही गया था शब्दों के संसार में विचरण करके और शाम को खोपोली की सैर, सोने पे सुहागा हो गया. खोपोली बहुत खूबसूरत है और हो भी क्यों ना, जहाँ एक खुशमिजाज इंसान रहेगा वहां का मौसम भी उसके जैसा ही होगा. 
रात को खाना खाने के बाद, महफ़िल जम गयी, एक सिरे पे नीरज जी और दूजे पे मैं, दे दना दन शेर, ग़ज़लें निकल रहे थे समझ लीजिये की नशिस्त का miniaturisation था मगर जो भी था मजेदार रहा.
अगली सुबह तो क्रिकेट के साथ शुरू हुई, भूषन स्टील में एक बहुत अच्छी कोशिश है सब लोगों को एक मंच पे या एक  पिच पे लाने की, रोज़ सुबह सब लोग अपने पद, पदवी को मैदान के बाहर रख कर क्रिकेट खेलने जुटते हैं और नीरज जी अगुवा होते हैं. मैंने भी काफी दिनों से क्रिकेट नहीं खेला था और ये मुराद भी पूरी हो गयी.
ऊपर चित्र में नीरज जी bowling करते हुए 
मौसम भी साथ था इसलिए धडाधड दो मैच खेल लिए, नीरज जी ने इस मैच में batting भी करी, bowling भी करी, fielding भी करी और umpiring भी करी, ऐसे all -rounder से अगर नहीं मिले तो फिर क्या बात हुई (गुरु जी मुंबई जल्दी आ जाइये).
इस मजेदार खेल के बाद रविवार की शाम प्रकाश झा के नाम रही, मगर राजनीति ने बहुत राजनीति खेली हमारे साथ, टिकेट ही नहीं मिल पा रहा था मगर हार मानने वाले हम भी नहीं थे, आखिर में लेकर ही छोड़ा.
फिल्म देखने से पहले हम लोग इंतज़ार में बाहर बैठे थे तभी का ये चित्र और एक जिंदादिल हसीं, फेविकोल के मजबूत जोड़ सी चेहरे पे हर वक़्त की तरह खिल रही थी.
मुद्दतों से मुद्दई जिस मुलाक़ात को मैं सोच रहा था आख़िरकार वो मुकम्मल हुई.

15 comments:

kshama said...

Neeraj ji se do baar mili hun. Har baar mahsoos hua, unke srijanatmak wyaktitv kaa sansaar behad vistrut hai..use samajh paana is jeevan me munasib nahi!

फ़िरदौस ख़ान said...

Nice Post...

माधव( Madhav) said...

good post

वीनस केसरी said...

पोस्ट पढ़ी
आपकी किस्मत पर जल भुन कर राख हुए


एक बात और, हम अकेले नहीं हैं |
अभी हमारे जैसे और भाई बंधू भी आते होंगे

नीरज जी से मिलना और उनसे गज़ल सुनना एक सपने जैसा है देखते हैं मेरा ये सपना कब पूरा होता है

आपकी खुशकिस्मती को सलाम

निर्मला कपिला said...

वीनुस की बात सहे34ए है मगर ये आपकी किस्मत सब से अच्छी है तो कोई क्या कर सकता है। दोनो को बधाई

Anonymous said...

इन जिंदादिल शख्स से मुलाक़ात का सौभाग्य हमें भी प्राप्त है.. :)

नीरज गोस्वामी said...

अंकित तुम आये, रहे, खाए, खेले, सुने, सुनाये वहां तक तो सब ठीक है लेकिन तुमने जो एक साधारण से शख्श के बारे ऐसी भ्रांतियां फैलायीं ये ठीक बात नहीं है...तुम्हारी कसौटी पे हम खरे उतरे वहां तो ठीक लेकिन तुम्हारे लेख को पढने के बाद जो अपेक्षाएं हमसे लोग करेंगे उसपर अगर हम खरे नहीं उतरे तो सोचो उसे कितनी निराशा होगी...किसी व्यक्ति के बारे में, खास तौर पर जब वो शायर होने का मुगालता पाले हो,पहली ही मुलाकात में कोई राय नहीं बनानी चाहिए...इसलिए जरूरी है लगातार आते रहो...फिर जो लिखोगे वो हमें मंजूर होगा...बोलो तुमको ये बात मंज़ूर है ?

नीरज

Navneet said...

Neeraj Ji se to Hum Bhi Mile hai, Hamari Kismat to Bahut achhi hai ! & we are meeting again in coming Month also. Very Good ! coz that great man is my chacha !

तिलक राज कपूर said...

@नीरज भाई
नादां बच्‍चा है, भावावेश में जाने क्‍या-क्‍या लिख गया। क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्‍पात। क्षमा करें। लगता है अभी उसने आपकी ताज़ा ग़ज़लें नहीं पढ़ीं वरना कुछ ज्‍यादह ही उत्‍पात मचाता। कुछ भी कहें ये छोटा सा उत्‍पातरूपी उत्‍पाद है बड़ा शालीन। मैं रहा होता तो आप पहली फ़्लाईट से भोपाल आ जाते। अब इस बच्‍चे को क्‍या पता कि सिक्‍सटीन से सिक्‍सटी का होते होते 'न' हट जाता है बस हॉं ही हॉं रह जाती है; और कई बार तो उम्र की वजह से गर्दन ऐसे झटके खाती है कि बिना हॉं कहे ही सामने वाले को हॉं का भ्रम हो जाता है। 'न' हट जाने से ऑंखें किसी सुंदर चीज से हटती नहीं हैं। कभी-कभी बेवजह पलकें झपकने लगती हैं, कभी दायीं कभी बायीं और लोग कुछ का कुछ मतलब निकाल लेते। ये सिक्‍सटीन का 'न' हटना कितना घातक होता है ये तो कोई सिक्‍सटी से उपर का मर्मज्ञ ही जान सकता है। माफ कर दीजिये बच्‍चे को, वरना कहीं मैं क्रिकेट खेलने आ गया तो खैरियत नहीं। मैनें अपनी जिन्‍दगी की पहली और अब तक की आखिरी बाल जब फैंकी थी तो कुछ पल मुझे भी नहीं दिखी थी, अगर कुछ पल बाद वो बाल मेरे कंधे पर आकर नहीं गिरती तो लोग उसे आज भी ढूँढ रहे होते। ऐसे बॉलर से बचना चाहते हैं तो बच्‍चे को माफ़ करदें, क्षमापर्व का इंतज़ार न करें।

haidabadi said...

अंकित साहिब
आप ख़ुशनसीब हैं आप को दीदार हो गया
मैंने नीरज जी से हजारों घंटे बात की है
कभी मिलने का मौका नहीं मिला
एक फ़रिश्ता सीरत इन्सान है वोह
खुद अपने आप मैं दीवान है वोह

आदाब
चाँद शुक्ला हदियाबादी

डेनमार्क

Ankit said...

@ नीरज जी, कांट्रेक्ट के मुताबिक ही मिलूँगा सर जी.
जिस मुगालते में मैं हूँ उसमे सोच रहा हूँ कि और भी आ जायें, वैसे शाम जी, सयेद जी और नवनीत जी भी इसी मुगालते में है उन्हें तुरंत से पहले नोतिसे भेज दिया जाए सर जी, और चाँद साहेब की ख्वाहिश भी पूरी हो जाए तो सोने पे सुहागा.

@ तिलक जी, सिक्‍सटीन से सिक्‍सटी का रहस्य तो जानदार है.
ऐसा लग रहा है साहित्यकारों का एक क्रिकेट मैच ज़रूरी हो गया है, रचनाओ की जगह बाल होंगी.

वीनस को तो रश्क के सिवा कोई काम नहीं जब किसी से मिला तो इसे रश्क हो जाता है, लगता है अब अपनी सब मुलाकातों को छिपाना पड़ेगा ताकि ये जले भुने तो नहीं, सही सलामत रहे(हा हा हा). आदरणीय निर्मला जी आपके सपोर्ट के लिए धन्यवाद, वीनस कुछ सीखो, बड़ों से.

गौतम राजऋषि said...

अरे वाह...हम तो कब से तमन्ना सजाये बैठे हैं नीरज जी से मुलाकात करने की। चलो, तुम्हारे बहाने थोड़ा-बहुत हमने भी सकून पा लिया इस हरदिल अज़ीज शायर और ब्लौगर के सानिध्य का।

हम भी तो मिल रहे हैं ना...कल या परसों?

लता 'हया' said...

मैं न केवल अंकित की बल्कि आप तमाम ब्लॉगर की शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने नीरज जी के मुताल्लिक़ इतने ख़ूबसूरत जज़्बातों का इज़हार किया है .वो मेरे भाई हैं और आप लोग उनके बारे में इतनी ऊँची राय रखते हैं .ये एक बहिन के लिए बाईसे-फख्र है . उन पर लेख लिखना मुझ पर उधार है और ये क़र्ज़ मैं बहुत जल्द अपने ब्लॉग पर अदा करुँगी ,इंतज़ार कीजिये .......

Himanshu Mohan said...

वाकया अच्छा रहा, अच्छा लिखा, अच्छा लगा
क्या पता वो अजनबी क्यूँ आज अपना सा लगा
सबने कुछ देखा बहुत समझा मगर हम क्या कहें-
आपका चर्चा ये हमको ख़ुद पे बीता सा लगा

Ankit said...

@ लता हया जी,
नीरज जी शख्स ही ऐसे है या कहूं जादूगर है, एक मुलाक़ात में जादू कर देते हैं.

@ हिमांशु मोहन जी,
बहुत अच्छे से आपने अपनी बात को पिरो दिया है.