18 May 2011

ग़ज़ल - मेरा पागलपन मशहूर ज़माने में

आजकल उफनती हुई गर्मी, जिस्म से पसीने की बहती हुई धार ने जीना दुश्वार कर रखा है, वैसे गर्मी से मुलाक़ात सुबह और शाम को ही होती है क्योंकि दिन तो ऑफिस में गुज़र जाता है मगर एक ज़रा सी मुलाक़ात भी गज़ब ढा देती है। लेकिन ये भी मौसम का एक रूप ही है, जिसका भी अपना अलग ही मज़ा है, अलग ही यादें हैं। गर्मी से जुड़ी सबकी यादें आजकल गुरु जी के ब्लॉग 'सुबीर संवाद सेवा' में चल रहे ग्रीष्म तरही मुशायरे में अलग ही आनंद दे रही हैं।



आज आप से रूबरू जो ग़ज़ल है वो 'साढ़े पांच फेलुन' में लिखी गयी है। आप जब तक इस ग़ज़ल के शेरों से शेर दर शेर गुज़रिये मैं तब तक अगली ग़ज़ल की बुनाई पूरी करता हूँ।


मेरा पागलपन मशहूर ज़माने में
एक अदा तो है तेरे दीवाने में

आँखों-आँखों में सारी बातें कह दी
तुम भी आ बैठे दिल के उकसाने में

शाम घुली है शब में ये जैसे-जैसे

चाँद उतर आया मेरे पैमाने में

सौंधी-सौंधी खुश्बू यादों की देते
भीगे-भीगे ख्वाब रखे सिरहाने में

इन रिश्तों की गाँठ न खोलो तो बेहतर
उम्र लगेगी फिर इनको सुलझाने में
 
सूखे फूल, पुराने ख़त, बिसरी यादें
मिल जाते हैं हर दिल के तहखाने में

[हिंदी चेतना जनवरी-मार्च 2013 अंक में प्रकाशित]

10 comments:

Pawan Kumar said...

सूखे फूल पुराने ख़त बिसरी यादें
मिल जाते हैं हर दिल के तहखाने में......
अंकित आपको पढना हमेशा अच्छा लगता है...... बहुत ही दिलकश लिखते हैं आप. लिखते क्या हैं एहसासों का एक स्मूथ सा फैब्रिक तैयार करते हैं आप.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रचना बहुत अच्छी है!

Rajeev Bharol said...

इन्तज़ार की घड़ियाँ समाप्त हुईं. बहुत दिनों से ब्लॉग पर आ आ कर देखता था की कोई नई गज़ल लगी है या नहीं?
बहुत ही बढ़िया गज़ल है एक बार फिर.
मतला बहुत ही खूबसूरत है. "तुम भी आ बैठे दिल के उकसाने में.." क्या बात है..वाह. "सौंधी सौंधी खुशबू ..भीगे भीगे ख्वाब." लाजवाब! "इन रिश्तों की गाँठ न खोलो.." बहुत ही गहरा ख्याल. आखिरी शेर तो बस ऐसा है की कोई शब्द नहीं हैं कहने के लिए. बधाई.
अगली गज़ल थोडा जल्दी लगाएं!

वीनस केसरी said...

आँखों-आँखों में सारी बातें कह दी,
तुम भी आ बैठे दिल के उकसाने में.

सौंधी-सौंधी खुश्बू यादों की देते,
भीगे-भीगे ख्वाब रखे सिरहाने में.

सूखे फूल, पुराने ख़त, बिसरी यादें,
मिल जाते हैं हर दिल के तहखाने में.

वाह वाह वाह

अंकित भाई जिंदाबाद गज़ल कही है
ये तीन शेर तो ऐसे जानलेवा कहे हैं की कुछ कहते नहीं बन पड़ता

आपकी ग़ज़लों में एक अलग ही फ्लेवर होता है
जो कहीं और देखने को नहीं मिलता

बहुत बहुत बधाई

Anonymous said...

सौंधी-सौंधी खुश्बू यादों की देते,
भीगे-भीगे ख्वाब रखे सिरहाने में. अंकित जी कभी कभी तो लगता है कि मेरे अन्दर के भाव आपकी कलम में सुव्यस्य्थित शब्द विन्यास के साथ प्रकट हो जाते हैं.
शब्द शिल्पी को इस सुन्दर रचना के लिए बधाई.

शुभेक्षु
अवधेश कुमार मिश्र

daanish said...

तुम भी आ बैठे दिल के उकसाने में...

वाह-वा !
क्या खूबसूरत मिसरा तहरीर किया है .. वाह !!
ग़ज़ल के शेर शाईस्ता हैं ,, नाज़ुक़ है,,
और दिलचस्प हैं ....
ख़ास तौर पर
सूखे फूल, पुराने ख़त, बिसरी यादें
मिल जाते हैं हर दिल के तहखाने में
शानदार और यादगार शेर !!!

"अर्श" said...

आँखों आँखों में सारी बातें कह दी / तुम भी आ बैठे दिल के उकसाने में !..... ओह क्या शे'र है अंकित ... बेहद नाज़ुक शे'र ! इस ग़ज़ल में ये शे'र बतौरे ख़ास पसंद है !

मनोज अबोध said...

अंकित जी
मेरे मिजाज की गजल कही आपने । इन रिश्‍तों की गांठ न खोलो वाला शेर बहुत प्‍यारा है । बधाई

Unknown said...

आँखों-आँखों में सारी बातें कह दी,
तुम भी आ बैठे दिल के उकसाने में.
बहुत ही बढ़िया !
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - स्त्री अज्ञानी ?

शिप्रा पाण्डेय "शिप" said...

bahut khub janab ye btor sher behd dilchsp h....bht bdhiya....bahut khub janab ye btor sher behd dilchsp h....bht bdhiya....