हिज्र इस बार भी मिला है मुझे
नींद बैठी है कब से पलकों पर
और इक ख़्वाब देखता है मुझे
जिस्म नीला पड़ा है शब से मेरा
साँप यादों का डस गया है मुझे
ज़िन्दगी की तवील राहों पर
उम्र ने रास्ता किया है मुझे
एक उम्मीद के बसेरे में
शाम होते ही लौटना है मुझे
रात भर नींद हिचकियाँ ले है
ख़्वाब ये किसका सोचता है मुझे
प्यारे दीवानगी बचाये रख
दश्त ने देख कर कहा है मुझे
तेरी चारागरी को हो मालूम
बस तेरा लम्स ही दवा है मुझे
ख़्वाब इक झिलमिलाया आँखों में
क्या तेरी नींद ने चखा है मुझे
इक सदा हूँ तेरी तरफ बढ़ती
अपने अंजाम का पता है मुझे
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फोटो - साभार इंटरनेट
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