31 August 2019

ग़ज़ल - मैं मुहरा बन के जिसका फिर रहा था




मैं मुहरा बन के जिसका फिर रहा था।
वो अपनी चाल में शातिर रहा था।

दिया हर शाख़ ने उसको सहारा,
वो पत्ता टूट कर जब गिर रहा था।

अचानक से नहीं ख़ामोशी छाई,
ये मौसम धीरे-धीरे घिर रहा था।

तेरी ऊँगली पकड़ कर ख़्वाब मेरा,
इसी दुनिया में ख़ुश-ख़ुश फिर रहा था।

रखा परदे में अपना इश्क़ तू ने,
मैं अपने इश्क़ में ज़ाहिर रहा था।

परखना काम है हर वक़्त का, और
वो अपने काम में माहिर रहा था।

---------------------

फोटो - 'Pillars Of Deceit' Painting by Michael Lang

01 December 2016

ग़ज़ल - इस लम्हे का हुस्न यही है


आँखों में फ़रयाद नहीं है
यानी दिल बर्बाद नहीं है

मुझ को छोड़ गई है गुमसुम
ये तो तेरी याद नहीं है

तुम बिन मुरझाये से हम हैं
जैसे पानी खाद नहीं है

इस लम्हे का हुस्न यही है
के ये इसके बाद नहीं है

उसने आह भरी तो जाना
दर्द मेरा बेदाद नहीं है

नींद खुली तो ढह जायेंगे
ख़्वाबों की बुनियाद नहीं है

*********
फोटो - साभार Korekgraphy

11 May 2016

ग़ज़ल - रंग सब घुलने हैं आख़िर इक कलर में


ख़ौफ़ शामों का सताता है सहर में
कुछ अँधेरे घर बना बैठे हैं घर में

उम्र पर चढ़ती सफ़ेदी कह रही है
रंग सब घुलने हैं आख़िर इक कलर में

धूप कुछ ज़्यादा छिड़क बैठा है सूरज
छाँव सब कुम्हला गई हैं दोपहर में

ज़िन्दगी यादों की दुल्हन बन गई है
बूँद अमृत की मिला दी है ज़हर में

बारिशों का ज़ोर था माना मियाँ पर
बल नदी जैसे दिखे हैं इस नहर में

दर्द को आवाज़ देती कुछ सदायें
गूँजती हैं रोज़ गिरजे के गजर में

ख़ूबियों को इक तरफ़ रख कर के सोचो
ऐब भी आयें अगर कोई हुनर में

-----------------------
फोटो - साभार इंटरनेट