04 August 2008

ग़ज़ल - रात दिन ख़यालों में इक अजब खुमारी है

रात दिन ख़यालों में इक अजब खुमारी है।
नींद हमसे रूठी है, करवटों की क्यारी है।

जैसे तुम नज़र में हो, जिंदगी में आ जाओ,
राह तेरी देखे जो रूह वो बेचारी है।

ढूँढता क्यों रहता है, ख़ुद को मेरी आंखों में,
तेरे बारे में कहती हर ग़ज़ल हमारी है।

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

ढूँढता क्यों रहता है, ख़ुद को मेरी आंखों में,
तेरे बारे में कहती हर ग़ज़ल हमारी है। ....
pyaar ki khubsurat bhasha,bahut sundar

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

Hari Joshi said...

इसी तरह गजलें कहते रहिए। जब आंखों में चांद दिख जाए तो उन गलियों में भी देखिए जहां अनेकानेक चांद दो जून की रोटी के लिए संघर्षरत हैं।

mustfa mahir said...

bahut acche chele bahut acche