08 December 2008

ग़ज़ल - चाँद खिलौना तकते थे

चाँद खिलौना तकते थे।
जब यारों हम बच्चे थे।

रिश्तों में इक बंदिश है,
हम आवारा अच्छे थे।

डांठ नही माँ की भूले,
जब बारिश में भीगे थे।

कुछ नए शेर जोड़ रहा हूँ....................................

पास अभी भी हैं मेरे,
तुने ख़त जो लिक्खे थे।

ठोकर खा के जाना है,
बात बड़े सच कहते थे।

यार झलक को हम तेरी,
गलियों-गलियों फिरते थे।

उसने ही ठुकराया है,
हम उम्मीद में जिनसे थे।

9 comments:

श्यामल सुमन said...

चिन्ता न थी कोई फिकर।
हम बच्चे थे तो अच्छे थे।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

रंजना said...

बहुत ही सुंदर लिखा है आपने.इसे थोड़ा और विस्तार दीजिये,बहुत बढ़िया रहेगा..

MANVINDER BHIMBER said...

kam shbdon mai kafi kuch piro diya

गौतम राजऋषि said...

वाह अंकित ...क्या बात है भई...सुभान्ल्लाह

तीनों शेर लाजवाब...और तो जोड़ा होता

mehek said...

waah bahut sundar

नीरज गोस्वामी said...

रिश्तों में एक बंधिश है
हम आवारा अच्छे थे
भाई अंकित क्या बात है...वाह...बेहतरीन शेर...लाजवाब...बधाई...ऐसा शेर बरसों में निकल कर आता है...
नीरज

Ankit said...

आप सभी को मेरा नमस्कार,
-श्यामल सुमन जी बहुत ही सुंदर शेर कहा है आपने, क्या कहने. बचपन के बारे में जितना कहो कम है.
-रंजना जी, मैंने चार नए शेर जोड़े है.
-मनविंदर जी शुक्रिया,
-गौतम जी, आपकी शिकायत को दूर करने की कोशिश की है चार नए शेर जोड़ के.
-महक जी शुक्रिया.
-नीरज जी, वो शेर मुझे भी सबसे अच्छा लगा. आपका और गुरु जी का आशीर्वाद हमेशा साथ रहे यही कामना करता हूँ.

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर!

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन बहुत बेहतरीन कहा है आपने अंकित जी बहुत-बहुत बधाई