आजकल ज़्यादा वक़्त निकलना मुमकिन नहीं हो पा रहा है, एम.बी.ए के आखिरी दौर में हूँ (मतलब प्लेसमेंट्स)। एक कोशिश की है, कुछ ख़याल ख्याल आ गए थे और फ़िर कलम चल पड़ी ख़याल बुनने के सफ़र पर .......................
दरअसल मेरी कोई ग़ज़ल शायद ही कभी मुकम्मल तौर पे लिखी गई होगी, हर एक ग़ज़ल में नये शेर वक़्त के साथ-साथ कड़ी दर कड़ी जुड़ते चलते रहते हैं।
ज़िद में रखता बादल है
बचपन कितना पागल है
कसमों वादों को सुनता,
कॉलेज में इक पीपल है
जो उतरेगा डूबेगा
ख़्वाहिश ऐसी दलदल है
उसकी रीडिंग लिस्ट में भी
अव्वल 'एरिक सीगल' है
मैं रोया तो चुप करने
आया माँ का आँचल है
दिन है छोटा सा किस्सा
शब इक मोटा नॉवल है
झाँक रही है धूप यहाँ
कमरा क्या है! जंगल है
5 comments:
मै रोया तो चुप करने
आया माँ का अंचल है
वाह भाई अंकित क्या बात है
आपकी तरही गजल भी बहुत अच्छी रही
प्लेसमेंट के लिए गुड लक
वीनस केसरी
बहुत अच्छे अंकित...."डूबेगा जो उतरेगा / ख्वाहिश ऐसा दलदल है" भई वाह
ढ़ेरों शुभकामनायें कैरियर के इस महत्वपूर्ण मोड़ के लिये
अंकित जी,
आपकी कलम आपका परिचय दे रही है। अच्छा लिखा है।
अंकित जी
डूबेगा जो उतरेगा,
ख्वाहिश ऐसा दलदल है।
वाह...वा...आप के लेखन में गहराई है....उर्दू शायरी को आप जरूर आगे ले जायेंगे...मेरी दुआएं आप के साथ हैं...बेहतरीन लिखते हैं आप.
नीरज
अंकित जी बहोत उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुति है ढेरो बधाई ,एक शंका है ख्वाहिश स्त्रीलिंग है या पुलिंग .....
अर्श
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