28 July 2009

ग़ज़ल - मेरे हौसलों में दुआ आपकी है

सबको नमस्कार,
जैसे पूरे देश में सूखे के हालत थे या हैं वैसे कुछ वक्त से मेरा ब्लॉग भी एक अदद पोस्ट की मार झेल रहा था मगर आज उसमे एक नई ग़ज़ल की बारिश हो गई है...........
मगर इस हालत के कुछ कारन थे, दरअसल आजकल मैं अपने ठिकाने(मुंबई) से दूर राजस्थान में हूँ या सीधे कहूं तो नीरज जी के वतन में हूँ। काम की व्यवस्तता के कारन वक्त नही मिल पाया मगर इस काम के कारन राजस्थान घूमने का मौका मिला और इस ज़मीं को करीब से देखने का सौभाग्य भी। साथ में सोने पे सुहागा वाली बात:- जाने माने ब्लॉग जगत के चेहरों (कुश जी और सैय्यद जी) से मुलाक़ात की शाम नसीब हुई. जल्द ही हाज़िर हूँगा राजस्थान रिपोर्ट के साथ मगर अभी लुत्फ़ लीजिये इस ग़ज़ल का, आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा........
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम (१२२-१२२-१२२-१२२)
(गुरु जी के आर्शीवाद से कृत ग़ज़ल)
लगी हाथ पे जो हिना आपकी है।
लिखी बात आयत में क्या आपकी है।

ज़रा सी बनावट भी ख़ुद में ना लाना,
हया आपकी ही अदा आपकी है।

मुहब्बत में पाना ही सब कुछ नहीं है,
ये एक बात गहरी सुना आपकी है।

मुझे अजनबी की तरह देखती है,
नज़र लग रही कुछ खफा आपकी है।

कभी भी तुम्हे ग़म ना होने दिया है,
कोई ज़िन्दगी को जिया आपकी है।

मुझे मुश्किलों से भला क्यों शिकायत,
मेरे हौसलों में दुआ आपकी है।

14 comments:

ओम आर्य said...

bahut hi gahara bishwas hai aapka .....aisa hi bana rahe .....sundar abhiwyakti

ओम आर्य said...

bahut hi gahara bishwas hai aapka .....aisa hi bana rahe .....sundar abhiwyakti

ओम आर्य said...

bahut hi gahara bishwas hai aapka .....aisa hi bana rahe .....sundar abhiwyakti

MANVINDER BHIMBER said...

mousam ka karam or aapki kalam ka kamal.....dono hi khoobsurat

दिगम्बर नासवा said...

अंकित जी..............बहुत लाजवाब लिखा है .....नए अल्फाज़ लिए,,,............ "उनकी नज़रों की खफा" आप खूब समझते हैं........... सभी शेर खूबसूरत , सधे हुवे ............. वैसे आपके ब्लॉग पर बारिश की ये फुहार अच्छी लगी .................

जितेन्द़ भगत said...

बेहतरीन लगी ये पंक्‍ति‍यॉं-
मुझे मुश्किलों से भला क्यों शिकायत,
मेरे हौसलों में दुआ आपकी है।

Vinay said...

वाह अंकित जी, बहुत ख़ूब!
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1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा

Udan Tashtari said...

ज़रा सी बनावट भी ख़ुद में ना लाना,

हया आपकी ही अदा आपकी है।

-जबरदस्त..सभी उम्दा!! वाह!

नीरज गोस्वामी said...

अंकित जी जरा पीठ तो आगे कीजिये...ठोकने को जी चाहता है...क्या ग़ज़ल कही है भाई...वाह...तालियाँ...सारे शेर बहुत खूबसूरती से कहे हैं...गुरूजी जो पारस हैं हाथ लगाते हैं तो ग़ज़ल सोने सी दमकने लगती है...वाह भाई आनंद आ गया...जयपुर से लौट कब रहे हो वापिस...
नीरज

संजीव गौतम said...

बढिया है अंकित भाई पूरी ग़ज़ल ख़ासकर मक्ता बहुत अच्छा हुआ है.

"अर्श" said...

क्या बात है गुरु भाई वाह कमाल कर दिया आपने आज तो वाकई क्या खूब शे'र कहे हैं कुछ शे'र वाकई ऐसे लगे जैसे मेरे लिए लिख रखा है आपने...

ज़रा सी बनावट भी ख़ुद में ना लाना,

हया आपकी ही अदा आपकी है।

इस शे'र की तरह ही आपकी ग़ज़ल में भी कोई बनावट नहीं है हर शे'र मुकम्मल और खुबसूरत जिसमे कोई बनावट नहीं है पूरी तरह से सादगी में है हर शे'र वाकई पीठ थपथपाने का और गले लगा लेने का दिल चाह रहा है .. बहोत बहोत बधाई .. गुरु देव को सादर प्रणाम..

अर्श

वीनस केसरी said...

अंकित,
हार्दिक बधाई कुबूल करो
बहुत सुन्दर शेर निकले है

कुछ एक तो बहुत गहरे अर्थो को निकाल कर सामने लाते है
बहुत खूब

वीनस केसरी

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah..wa सुंदर ग़ज़ल... वाह..

गौतम राजऋषि said...

दिनों बाद आते हो और छा जाते हो अंकित मियाँ....भई खूब शेर कहे हैं...
और राजस्थान रिपोर्ट की प्रतिक्षा है...