राजस्थान में एक महीने की ट्रेनिंग के बाद कुछ ही वक़्त बिताया मुंबई में और फिर आ गया उत्तर प्रदेश में, वैसे आजकल लखनऊ में डेरा जमाया हुआ है और यहीं पर बना रहेगा ९ सितम्बर तक. वीनस जी ने पूछा था की इलाहाबाद कब आना हो रहा है? वीनस जी इस बार तो मौका नहीं मिल पायेगा अगली बार पूरी कोशिश रहेगी.
हाज़िर हूँ आप सबके सामने एक छोटी बहर (बहरे मुतदारिक मुसमन मक्तूअ २२-२२-२२-२२) की ग़ज़ल के साथ, जो गुरु जी का आर्शीवाद पाकर, आपका प्यार लेने के लिए आ गई है.
जब ख़ुद से मिलता हूँ अक्सर
सोच हजारों लेंती टक्कर
जंग छिडी लगती दोनों में
बारिश की बूंदे औ' छप्पर
खेल गली के भूल गए सब
जब से घर आया कंप्यूटर
नफरत, आदम साथी लगते
याद किसे अब ढाई आखर
कद ऊँचा है जिन लोगों का
आंसू अन्दर, हंसते बाहर
ज़ख्म कहाँ भर पाए गहरे
आँखों में सिमटे हैं मंज़र
हर अच्छा है तब तक अच्छा
जब तक मिल पाए ना बेहतर
पिछली बार नीरज जी ने कहा था की जयपुर की कोई फोटो नहीं लगाई, वैसे लगाई तो थी मगर लीजिये एक और सही. ये अलबर्ट म्यूज़ियम के बाहर का नज़ारा है. अभी तक के लिए इतना ही, जल्द ही हाज़िर होता हूँ।

15 comments:
सोलहो आने बहर में ...शाबाश !
बेहतरीन!! ऊँचे भाव!
वाह भाई अंकित आनंद आ गया आपको जयपुर में देख कर और ग़ज़ल को बुलंदियां छूती देख कर, बहुत अच्छे शेर कहें हैं आपने...जंग छिडी..." और "कद ऊंचा है..." लाजवाब शेर हैं...वाह वा....लिखते रहें...वापस लौटिये फिर मिलते हैं...
नीरज
Bahut gahre bhaav hain aapki gazal men.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
Bahut gahre bhaav hain aapki gazal men.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
बहुत ही सुन्दर.......
अच्छी ग़ज़ल हुई है अंकित जी.खेल गली के और ज़ख़्म कहां बहुत अच्छे शेर हुए हैं. लख़नऊ हो तो वहां सरवत जमाल जी से मुलाकात कर सकते www.sarwatindia.blogspot.com उनका ब्लाग है. आदरणीय मुनव्वर राना जी भी लख़नऊ में ही हैं. लख़नऊ में क्या विभागीय गतिविधियां होंगी? मैं भी सहकारिता विभाग में ही हूं.
हर शे'र आला दर्जे के हैं भाई अंकित.. कुछ शे'र तो ऐसे है जैसे लग रहा है या तो मैंने उन्हें लिखे हैं या फिर आपने मेरे लिए लिखे है और यही अछे शाईर की पहचान होती के के उसको पढ़ने वाले को लगे के जो वो पढ़ रहा है उसके अपने से मिलती बात हो और फिर वो बात बात नहीं रह जाती... बहुत ही खूबसूरती से बात दिल तक तरलता और सरलता से पहुंची... जयपुर वाकई एक खुबसूरत शहर है... अगर आप लखनऊ में है तो गुरु बहन कंचन से जरुर मिलें... वो वहीँ रहती हैं... और मेरा सलाम उन्हें जरुर दें... तस्वीर अछि है ... बधाई हो...
अर्श
कमाल की ग़ज़ल है
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आनंद बक्षी
अंकित भाई क्या कहू, गजल पढने के बाद तो लगा की वाह क्या बेहतरीन शुरुआत हुई है, आज की ब्लोगिंग सार्थक हो गई
मैं बस यही कहना चाहता हूँ की जब गजल का आख़री शेर पढ़ लिया तो ज़बान फिसल गई और जोर से हुंकार निकली वा$$$$ह
लखनऊ में कंचन जी और सर्वात जमाल साहब से मुलाक़ात करियेगा तो मेरी भी नमस्ते कहियेगा
(देखिये भूल न जाईयेगा)
वीनस केसरी
har achha tab tak achha hai jab tak na mil jaaye behtar...Nice ! I can see the depth and clarity of vision in your expression.
wahhhhhhh kya gazal hui hai
har achcha tab tak hai achha
bahut khoobsurat baat
badhayi
ये देखिये इतने लोगो ने आप से कहा कि कंचन से ज़रूर मिलना और आप ने २२ से ३१ तक हमारी खबर ही नही ली...! अब बस थोड़ी सी गलती मेरी है कि मेरा आपके ब्लॉग पर आना नही हुआ, तो मैं आप को आमंत्रित नही कर पाई। मगर सीनियर हूँ भाई मैं क्लास में.... (शायद) वैसे उम्र में तो बड़ी हूँ ही....!
अब जाइये आपके किसी भी शेर की बड़ाई नही की जायेगी। यूँ कंप्यूटर वाला शेर बहुत सटीक लग रहा है, फिर भी....! ना.. हम बड़ाई नही करेंगे...:) :)
जंग छिडी लगती दोनों में
बारिश की बूंदे औ' छप्पर.
नफरत, आदम साथी लगते
याद किसे अब ढाई आखर.
AANKIT JI ...... CHOTI BAHAR KI LAJAWAAB GAZAL AUR KHOOBSOORAT CHITR, DONO HI MAHKA RAHE HAIN AAPKE BLOG KO .... PICHLE 7 DIN BHAARAT MEIN BEETE MERE BHI AUR BLOG SE BHI DOOR RAHA ... BAOOT HI ACHEE ACHE GAZLEN MISS KARI...
AAPKI GAZAL KA HAR SHER UMDA, DAARSHNIK AUR KUCH NA KUCH KAHTA HUVA HAI .....
देर से आ रहा हूँ अंकित....मन की उलझनें सब से परे रखे हुई थी।
ग़ज़ल कमाल की है। मास्टर-पीस!!!! यकीनन..
एक बेहतरीन मतला से शुरू हो हर शेर ...कम्प्यूटर वाला और ढ़ाई आखर वाला एकदम अनूठे हैं। और आखिरी शेर भी बहुत पसंद आया।
कंचन से मुलाकात कैसी रही? उसकी जुबानी सुन चुका हूँ। तुम्हारी बहुत तारीफ़ कर रही थी।
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