12 October 2009

ग़ज़ल - मेरे अंदाज़ में तू घोल बचपन की उमर वो इक

आ गया हूँ आपके सामने एक नयी ग़ज़ल के साथ. तिरछी कलम से लिखी हुई ग़ज़ल, अब आप सोच रहे होंगे ये भला तिरछी कलम से लिखी हुई ग़ज़ल क्या होती है? दरअसल पंतनगर में जब मैं शुरूआती दौर में ग़ज़ल (बेबहर) लिखा करता था तो मेरे साथ मेरे हमउम्र के शायर दोस्त भी थे और हम सब दोस्त अपनी ग़ज़ल एक दुसरे को सुनाया करते थे. उस वक़्त ज्यादतर ग़ज़लें मोहब्बत की सेंट्रल थीम में आती थी और जो कोई ग़ज़ल मोहब्बत का लिबास छोड़ कर कोई और चोगा ओढ़ लिया करती थी तो हम उसे तिरछी ग़ज़ल कहते थे जो लिखी जाती थी तिरछी कलम से. तो ये ग़ज़ल भी कुछ ऐसे ही है. हम लोगों ने अलग ही लफ्ज़ चुन रखे थे हर चीज़ के लिए, आगे उनसे भी आपको मिल वौंगा मगर अभी आप लीजिये इस तिरछी ग़ज़ल का मज़ा................
बहरे हजज मुसमन सालिम (१२२२-१२२२-१२२२-१२२२)
(गुरु जी के आशीवाद से कृत ग़ज़ल)

हजारों ढूँढती नज़रें कहाँ आखिर नज़र वो इक.
जो देखे दूर से आती उजालों की सहर वो इक.

अगर है देखना तुमको जुनु मंज़िल को पाने का
तो देखो चूमती साहिल समंदर की लहर वो इक.

मेरे अशआर सच्चे हो खुदा मांगू दुआ तुझसे
मेरे अंदाज़ में तू घोल बचपन की उमर वो इक.

अगर भटके नहीं इन्सां तो क्या वो सीख जायेगा
नहीं टकराएगा तो पायेगा फिर क्या डगर वो इक.

कहीं हैं ज़ात की बातें कहीं धर्मों की टक्कर है
मिटा देंगे सभी को ये बनेंगे जब ज़हर वो इक.

है बचपन शोख इक चिड़िया जवानी आसमां फैला
बुढापा देखता दोनों खड़ा तनहा शज़र वो इक.

तो अभी दीजिये इजाज़त जल्द ही हाज़िर हूँगा एक नयी ग़ज़ल के साथ..................

19 comments:

संजीव गौतम said...

ये ग़ज़ल इस बात का प्रमाण है कि बहुत आगे जाओगे. अच्छी ग़ज़ल कही है.

Ankit said...

Neeraj Goswami Ji se prapt comment.............

"तिरछी कलम से लिखी ग़ज़ल सीधे दिल में उतर गयी...खूबसूरत अशआर...अंकित...आपने बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है..वाह...

नीरज "

Ankit said...

ब्लॉग में कमेन्ट करने में कुछ समस्या आ रही थी उसके लिए हुई असुविधा के लिए माफ़ी चाहता हूँ वो तो शुक्रगुजार हूँ मैं गुरु जी का जिन्होंने तुंरत मुझे इसके बारे में सूचित कर दिया. मैं तो ऑफिस से ब्लॉग पे पोस्ट लगा के घर निकल गया था मगर फिर तुंरत साइबर कैफे जाकर इसे दुरस्त किया.

"अर्श" said...

प्रिय भाई अंकित बहुत खूब ग़ज़ल कही तुमने... मेरे अश'आर सच्चे हो .... इस शे'र के क्या कहने बहुत ही बारीक मगर दिल में सीधे उतर जाने वाली ग़ज़ल कही है तिरछी कलम से लिखी ये ग़ज़ल... बहुत बहुत बधाई

अर्श

कुश said...

तिरछे होंकर टिपण्णी लिख रहा हूँ,. बड़ी कमाल की ग़ज़ल है..तिरछाहट टपक रही है..

वीनस केसरी said...

अगर भटके नहीं इन्सां तो क्या वो सीख जायेगा
नहीं टकराएगा तो पायेगा फिर क्या डगर वो एक.


bahut khoobsoorat gajal kahi

ye sher to jaise mere upar hi kah diya aapne

is samay bhatak raha hoon bhatkan kaisee hai ye bhee samajh nahi aata to aapko kya bataau........

venus kesari

Anonymous said...

छा गए गुरु :)

बहुत सुन्दर...

पंकज सुबीर said...

अंकित अच्‍छी ग़ज़ल कही है । तेवर बनाये रखना क्‍योंकि आज के दौर में तेवर की ही कमी हो रही है ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह क्या बात है.......

दिगम्बर नासवा said...

LAJAWAB GAZAL AANKIT JI ... KAMAAL KE SHER HAIN ..

कंचन सिंह चौहान said...

मेरे अशआर वाला शेर बहुत अच्छा और बहुत सच्चा है अंकित...!

कंचन सिंह चौहान said...
This comment has been removed by the author.
डिम्पल मल्होत्रा said...

ujalo ki sahr jaisee,bachpan ki umar jaisee lagi apki gazal...

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
गौतम राजऋषि said...

उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़...अंकित!!!!

एक बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है तुमने। एकदम अनूठा रदीफ़ और ग़ज़ब के काफ़िये..

आखिरी शेर पे मेरा सब लिखा निछावर...

god bless you dear bro...

Dr. Shreesh K. Pathak said...

अच्छी पंक्तियाँ ,वाकई....बधाई स्वीकार करें.....

Ambarish said...

jagjit singh ji ki ek ghajal se panktiyan thoda change karke likh raha hun..
tirche tirche tere ghajal jo aate hain,
seedha seedha dil pe nishaana lagta hai...

निर्मला कपिला said...

सिर्फ एक शेर क्े लिये कहूँ तो पूरी गज़ल से ना इन्साफी होगी। फिर भी इस के लिये दाद दिये बिना न रह सकी
अगर भटके नहीं इन्सां तो क्या वो सीख जायेगा
नहीं टकराएगा तो पायेगा फिर क्या डगर वो एक.
बहुत बहुत शुभकामनायें

Ankit said...

मेरी हौसलाफजाई के लिए आप सभी का शुक्रिया,
संजीव जी, कुश जी, सैयद जी, दिगम्बर जी, अर्श जी, वीनस, कंचन दीदी, निर्मला जी, नीरज जी, राज जी, प्रखर जी, अम्बरीश जी आपका आर्शीवाद और प्यार इसी तरह बना रहे.
गुरु जी मेरी सदेव कोशिश रहेगी की मैं अपने तेवरों को बनाये रखूँ और इससे भी अच्छा लिखूं और कहूं, और वो संभव है आपके आर्शीवाद से जिससे मैं इतना कुछ लिख पा रहा हूँ.
गौतम भैया आपने बहुत बड़ी बात कह दी है, मैं अभी उस लायक नहीं हूँ. आपका स्नेह मुझपे बना रहे यही कामना करता हूँ, आपसे बात करके दिल खुश हो गया (इस लम्हें का इंतज़ार दिल में संजोये रखा था).