एक ताज़ा ग़ज़ल आपके लिए पेश-ए-ख़िदमत है।
बहर :- बहरे मुतदारिक मुसमन मक्तूअ
रुक्न:- २२-२२-२२-२२
अभी आप से विदा लेता हूँ इस वादे के साथ कि एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ जल्द ही वापिस आऊंगा...............
बहर :- बहरे मुतदारिक मुसमन मक्तूअ
रुक्न:- २२-२२-२२-२२
बेचैनी का ये आलम भी.
पागल तुम दीवाने हम भी.
प्यार भरे तेरे इस ख़त में
लफ्ज़ चले आये कुछ नम भी.
मेरी साँसों में बहती है
तेरी साँसों की सरगम भी.
इक संदूक मिला खुशियों का
एक पोटली में कुछ ग़म भी.
साथ चले आये बारिश के
बीती यादों के मौसम भी.
तुमने आने की जिद क्या की
वक़्त चले अब कुछ मद्धम भी.
अभी आप से विदा लेता हूँ इस वादे के साथ कि एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ जल्द ही वापिस आऊंगा...............
12 comments:
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है भाई जान
'साथ चले आए बारीश के....यह शेर ख़ास पसंद आया.
--बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है अंकित आप ने.
Bahut khoob gazal kahi!
वीनस से प्राप्त टिप्पणी..........
अंकित भाई
गजल बहुत पसंद आई
दिली दाद कबूल फरमाएं
हर शेर काबिले रश्क है :)
आपकी लेखनी दिन प्रति दिन उचाईयों की ओर अग्रसर है और आपकी गजलों में अब
कुछ नापसं खोज पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं रह गया है और यह बात मेरे लिए
खुशी का वायस है
आपको हार्दिक बधीई
bahut shandar rachna
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
bahut shandar rachna
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल ...
मेरी सांसों में बहती है ,
तेरी सांसों की सरगम भी ..
इस शे'र ने जान ले ली भाई ... अच्छी ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई...
अर्श
umda ghazal...........!
आज ही पढ़ा अंकित , बहुत अच्छा लिखते हो. दिल को छु गयी आखिरी पंक्तियाँ तो....
god bless you.
regards
ये खूबसूरत ग़ज़ल कैसे छूट गयी थी मुझसे?
बेहतरीन...लाजवाब, छोटी बहर कहर ढ़ाते इश्किया शेर...उफ़्फ़्फ़।
आखिरी शेर का अंदाज़े-बयां तो...उफ़्फ़्फ़्फ़!
ऊपर वाली की विशेष नैमत है अंकित जी आपकी कलम पर।
प्यार भरे तेरे इस ख़त में
लफ्ज़ चले आये कुछ नम भी.
इक संदूक मिला खुशियों का
एक पोटली में कुछ ग़म भी.
अंकित हमेशा की तरह लाजवाब करते शेरों से सजी खूबसूरत ग़ज़ल...भाई वाह...जियो...खोपोली ने हरी चुनरिया ओढ़ ली है...घूंघट उठाने कब आओगे?
नीरज
Post a Comment