जब मैंने ये खबर पढ़ी या कुछ ऐसी ही ख़बरें जिनमे बस स्थान में परिवर्तन रहा होगा, पढता हूँ तो लगता है कि वाकई हमने सोचना और सोच के काम करना बंद कर दिया है। हम सभी आँखें मूँद कर झुण्ड के झुण्ड में चले जा रहे हैं कदम से कदम मिलकर ना जाने किस ओर, इसका भी शायद ही किसी को पता हो ?
जब हमें कुछ सही करने का दायित्व मिलता है तो हम उससे नज़र चुरा कर, वक़्त की कमी का बहाना बना कर आगे निकल जाते हैं, और अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं और ऐसा चल रहा था, चल रहा है और शायद आगे भी चलता रहेगा...........क्योंकि वक़्त बदल जायेगा मगर हम नहीं।
(चित्र:- आभार निखिल कुंवर)
सोचिये, सोचना ज़रूरी है
आग को भी हवा ज़रूरी है
सोचिये है ख़ुदा ज़रूरी क्यूँ ?
छोड़िये…गर ख़ुदा ज़रूरी है
रूठ कर जाते शख़्स की जानिब
कम से कम इक सदा ज़रूरी है
आ मेरी नींद के मुसाफ़िर आ
ख़ाब की इब्तिदा ज़रूरी है
ज़िन्दगी जीने का सबब माँगे
मैंने पूछा…कि क्या ज़रूरी है
दो जुदा रास्ते बुलाते हैं
और इक फैसला ज़रूरी है
अपने हालात क्या कहे दुनिया
बस ये जानो… दुआ ज़रूरी है
अजनबी शहर में मुसाफिर से
रास्तों की वफ़ा ज़रूरी है
जिस्म दो एक हों मगर पहले
रूह का राब्ता ज़रूरी है
२१२२-१२१२-२२/११२
बहरे खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ अस्तर
12 comments:
अंकित जी छोटी बहर की इस ग़ज़ल के लिए आपको क्या कहूँ...वाह...वा...बस कमाल किया है आपने...हर शेर बहुत कारीगरी से गढ़े गये हीरे सा है...मेरी दाद कबूल करें
नीरज
Ankit bahut bahut achchi gazal kahi hai..
har sher kamaal .. matla khoobsurat, dua zaruri hai bahut sunder..
dil, jigar, housla zaruri hai waah waah
Behad khoobsoorat gazal kahee hai!
Gantantr Diwas kee dheron badhayee!
बहुत दिनों बाद आये हो मियाँ , अच्छी ग़ज़ल कही है अंकित तुमने ! मतला बेहद पसंद आया! और दूसरे शे'र पर अपना ही एक शे'र याद आया ! हाँ सिर्फ शमशीर क्या करेगी भला / ये शे'र नयापन लिए है जो ज़रूरी है ! अजनबी शहर में मुसाफिर से ... बशीर साब की याद दिलाता है ! फिर से अगली ग़ज़ल के लिए इंतज़ार करूँगा !
रुक्न गलत तो नहीं लिखा है ऊपर तुमने? मेरे हिसाब से तो ये 2122-1212-22/122 हिना चाहिये...अर्श मियां की फेवरिट बहर :-)
मतला बेमिसाल है। दूसरा शेर ओके टाइप...कई बार कहा जा चुका है। तीसरा शेर कमाल का...खूब सारी दाद! चौथा शेर भी ठीक-ठाक लगा। पांचवे शेर पर डबल दाद!! छठा शेर भी काबिले-दाद!!! और आखिरी शेर ...उम्म्म्म...ठीक है।
कुल मिलाकर अच्छी ग़ज़ल!
लाजवाब. जबरदस्त.
मतला कमाल का है और बाकी के शेर और भी जोरदार. यूं कहें पूरी गज़ल बेमिसाल है.
@ गौतम भैय्या, आप ने सही कहा, रुक्न गलत लिखे हुए थे जो अब सही कर लिए हैं.
यार मुझे दिल से सारे ही शेर अच्छे लगे...! सारे के सारे...!!
एख बार में जो मन को भा जाये मेरे लिये अच्छे की वही परिभाषा है और इसमे ये गज़ल लाजवाब है...!!
God bless You
पूरी गज़ल बेमिसाल है| धन्यवाद|
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...
laajwaab bemisaal... lage raho munna bhaaiiii
अगली गज़ल कब आ रही है?
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