वो वक़्त का टुकड़ा जो सिद्धार्थनगर में नवोन्मेष महोत्सव २०११ के कवि सम्मलेन-मुशायेरे के लिए ही शायद तय हुआ था. २५ जून की शाम का अंदाज़ और मिज़ाज कुछ अलग सा था. मुंबई से सिद्धार्थनगर पहुँचने का सफ़र जो अपने में एक मुकम्मल सफ़र था, ख़ुद में एक दिन और दो रातें समेटे हुआ था , वो भी शायद इसी वक़्त के इंतज़ार में था.
यूँ तो ये सफ़र लम्बा बहुत था मगर लम्बा कहीं से भी नहीं लगा, भोपाल से गुरु जी का साथ, कानपुर से रविकांत भाई और लखनऊ से कंचन दीदी, इस सफ़र में जुड़े. इस सफ़र का वो एक दिन जो बाहर मौसम की बरसात में महक रहा था वही ट्रेन में गुरु जी के ज्ञान से भीनी-भीनी खुश्बू दे रहा था.
यूँ तो ये सफ़र लम्बा बहुत था मगर लम्बा कहीं से भी नहीं लगा, भोपाल से गुरु जी का साथ, कानपुर से रविकांत भाई और लखनऊ से कंचन दीदी, इस सफ़र में जुड़े. इस सफ़र का वो एक दिन जो बाहर मौसम की बरसात में महक रहा था वही ट्रेन में गुरु जी के ज्ञान से भीनी-भीनी खुश्बू दे रहा था.
उस पूरे दिन में यूँ तो हर लम्हा सहेजने लायक है मगर एक दिलचस्प किस्सा जो गुरु जी को हमेशा याद रहेगा कुछ अलग ही रंग लिए था, बातों ही बातों में कई मुद्दे छिड़े, कई बातें निकली, और सब कुछ सुहावना बन गया.
सिद्धार्थनगर में अज़ीज़ों का जमावड़ा एक अलग ही रंग लिए हुए था, और शाम को इन सब अज़ीज़ों के साथ-साथ जनाब राहत इन्दौरी साब के साथ मंच साझा करने का जूनून अपने अलग ही चरम पे था. इस बेसब्री को कम करते हुए शाम भी जल्दी ही आ गयी. बहुत अच्छा कार्यक्रम रहा, नवोन्मेष संस्था के अध्यक्ष विजित सिंह ने अपने साथी दोस्तों के साथ आयोजन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, और उनके साथ में वीनस भाई भी तन मन से सिद्धार्थनगर में पिछले एक-दो दिनों से लगे हुए थे. ये मुलाकात, ये लम्हा ज़िन्दगी की डाइरी में एक यादगार और खूबसूरत लम्हें की शक्ल में दर्ज हो चुका है.
एक मतला और चंद शेर जो नवोन्मेष महोत्सव में आयोजित कवि सम्मलेन-मुशायेरे में सुनाये थे, आपके लिए हाज़िर हैं;
नए सांचे में ढलना है अगर तो फिर बदल प्यारे.
तू अपनी सोच के पिंजरे से बाहर अब निकल प्यारे.
झुकाएगा नहीं अब पेड़ अपनी शाख पहले सा,
तेरी चाहत अगर इतनी है ज़िद्दी तो उछल प्यारे.
सड़क पर हम भी उतरेंगे, हमारी भी हैं कुछ मांगें
नया फैशन है निकला देश में ये आजकल प्यारे.
तू अपनी सोच के पिंजरे से बाहर अब निकल प्यारे.
झुकाएगा नहीं अब पेड़ अपनी शाख पहले सा,
तेरी चाहत अगर इतनी है ज़िद्दी तो उछल प्यारे.
सड़क पर हम भी उतरेंगे, हमारी भी हैं कुछ मांगें
नया फैशन है निकला देश में ये आजकल प्यारे.
(चलते-चलते एक बात और, गौतम भैय्या और मुझे हम दोनों के काव्य-पाठ के लिए गुरु जी की तरफ से एक ख़ास, या यूँ कहें कि बेहद ख़ास तौहफा मिला है जो किसी और से साझा नहीं किया जा सकता इसलिए वो क्या है उसके बारे में पूछने की कोशिश करना फ़िज़ूल ही जायेगा, आप बस रश्क कर सकते हैं.)
14 comments:
अच्छी पोस्ट.... आना तो मुझे भी था, सरकारी मसरुफियात ने आने नहीं दिया. आपकी इस पोस्ट के माध्यम से उस मंच से हम भी सीधे जुड़ लिए.
(चलते-चलते एक बात और, गौतम भैय्या और मुझे हम दोनों के काव्य-पाठ के लिए गुरु जी की तरफ से एक ख़ास, या यूँ कहें कि बेहद ख़ास तौहफा मिला है जो किसी और से साझा नहीं किया जा सकता इसलिए वो क्या है उसके बारे में पूछने की कोशिश करना फ़िज़ूल ही जायेगा, आप बस रश्क कर सकते हैं.)
अच्छा तो पूरी पोस्ट सिर्फ़ ये बताने के लिये यानि जलाने के लिये ही लिखी गई है!!!!
अरे ये अनाम टिप्पणी क्यों हो रही है--
रवि
झुकाएगा नहीं अब पेड़ अपनी शाख पहले सा
तेरी चाहत अगर इतनी है जिद्दी तो उछल प्यारे
वाह अंकित वाह...दिल खुश कर दिया भाई...कहाँ से ऐसे मिसरे ढूंढ लाते हो...रश्क नहीं होता, अब प्यार आता है तुम पर...रिपोर्ट अधूरी लगी जरा विस्तार से सारी बातें बताओ तो करार आये...वैसे भी गुरूजी और बाकि प्रियजनों की बातें जितनी भी बार सुनाओगे मन नहीं भरेगा...जल्द मिलते हैं पूरी खबर चाहिए हमें...
गुरूजी का दिया तो हर तोहफा खास होता है भाई...तुम्हें और गौतम को तोहफा मिला है तो हम भला रश्क क्यूँ करेंगे...पार्टी करेंगे.
नीरज
किस्मत वाले हो अंकित.. गुरूजी और राहत इन्दौरी जी के साथ मंच सांझा करना कोई छोटी बात नहीं है. और ये शेर तो कमाल हैं..
Waqayi qismatwale hain aap! Kaash ham bhee sunnewalon mese ek hote!
अंतिम पंक्ति पढ़ कर मुस्कुरा पड़ा, आपकी प्रस्तुति बेहतरीन थी पहले भी बधाई दे चुका हूँ फिर से बधाई टिकाईये :)
अब ये बताईये जो माल अलग बाँध के रखा है वो कब पेश करेंगे ?
हम तो दो दिन पहले इस लिए पहुंचे थे कि थोड़ी फूं-फां करके आप लोग को झांसे में ले लेंगे कि वीनस में बहुत मेहनत की, देख कर अच्छा लगा कि एक बन्दा तो झांसे में आ ही गया है :)
दो चीजें छूट गईं । पहली तो मेरा भोपाल से 25 का रिजर्वेशन और बैठना 24 को । दूसरा ये कि डॉ राहत इन्दौरी का मुशायरे के बाद तुम्हारी तरफ इशारा करते हुए कहना 'इस लड़के ने बहुत अच्छा पढ़ा है आज'
ब्लौगर पे नही कमेन्ट को लाइक करने का विकल्प होना चाहिए था| गुरूजी के कमेन्ट को सुपर लाइक करता....हमासब को बहुत गर्व है तुम पर|
गुरूजी का वो तोहफा तो अनमोल है| जाने कितनी बार रोज़ हँसता हूँ उस दिन से| वीनस को कैसे बताया जाए कि ये तोहफा किसी से शेयर नहीं हो सकता...हा! हा!!
अरे ! ये पोस्ट मिस हो गई थी। मैने तो पढ़ी ही नही।
मुझे तो लगा कि ट्रेन का ज्ञान अभी इधर बाँटा जायेगा, मगर तुम ने तो बस वो फल दिखा के ललचवाना और फिर खुद गपक कर लेने वाला काम किया।
अब वो गिफ्ट जो किसी से शेयर नही करना है, तो बहन होने के नाते मैं तो यूँ भी अंतिम पायदान पर हूँ। लेकिन अजीब बेचैनी पैदा कर दी यार.....!!
कवि सम्मेलन में तुम्हारा पर्फार्मेंस क्या ग़ज़ब का था भाई। आत्मविश्वास हो तो ऐसा।
दुआएं।
@ सिंह साब, आपसे अगली दफा ज़रूर मुलाकात होगी. कंचन दीदी ने बताया था कि आप किन्ही व्यस्तताओं के कारण नहीं आ पाए.
@ नीरज जी, आपका प्यार है, जो थोड़े बहुत शेर कह पा रहा हूँ. आपसे जल्द ही मिलने आता हूँ.
@ राजीव जी, शमा जी, शुक्रिया.
@ वीनस भाई, कौन सा माल, कहीं गिफ्ट वाली बात तो नहीं...वो हो तो भूल जाइये.
@ गुरु जी, आपका आशीर्वाद है, जो कुछ भी थोडा-बहुत सीख पाया हूँ. अपने आप को बेहद खुशनसीब मानता हूँ कि राहत साब को मेरे शेर पसंद आये. ट्रेन वाली घटना तो वाकई यादगार बन पड़ी है, वो बयाँ करने में एक नयी पोस्ट बन जायेगी.
@ गौतम भैय्या, आप्शन होने या होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, आपके कहने से ही वो अपना दर्ज़ा ले चुका है. साथ में आपका ये कमेन्ट भी. गिफ्ट को लेकर, रवि भाई और वीनस के तुरत-फुरत फ़ोन आ गए, पूछने लगे बताओ..बताओ, मगर दोनों ही नाकामयाब रहे.
@ कंचन दीदी, गिफ्ट का ज़िक्र ही बेचैनी पैदा करने के लिए किया गया था.
navonmesh parivaar aur siddharthnagar dono hi aap aur aapki prastuti ke kayal ho gaye hai ,yahan par apne yuvao me apni ek alag hi fan following tayar kar li hai. manch pe apka confidence aur presentation dono ne kavi sammelan ko ek nayi ucchai pradan ki thi.
अभी फिर से उस गिफ्ट ने ठहाके लगाने पे विवश कर दिया॥सोचा तुम्हें बताऊँ!!!!
अंकित भाई अब तो बता दो कि वो गिफ्ट क्या था
मैं किसी से नहीं कहूँगा,, सच्ची,, आपकी कसम
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