18 April 2012

अर्श भाई शादी की मुबारकां .......

अर्श भाई जिस जामुनी लडकी को कई बरसों से ढूंढ रहे थे, जिसका तसव्वुर लफ़्ज़ों के ज़रिये शेरों में उतार रहे थे आज उनके साथ परिणय बंधन में बंधने जा रहे हैं और माला भाभी ने भी इस बात को बहुत सीरियसली ले लिया है, सगाई की इस तस्वीर में ज़रा गौर से उनके लहंगे का रंग देखिये, शायद जामुनी ही है. :)


कुछ साल पहले गुरुकुल के ज़रिये इस चाशनी से मीठे शख्स (प्रकाश सिंह अर्श) के साथ मुलाक़ात हुई थी, और धीरे-धीरे बड़े भाई और दोस्त का एक ऐसा रिश्ता बन गया जो इस आभासी दुनिया में किसी सपने सरीखा है, मगर जैसे अल सुब्ह दिखने वाले ख्वाब सच्चे होते हैं उसी तरह ये ख्वाब भी एक हकीक़त है.

इतने सालों से सिंगल के क्लब में रह के आपने आज के दिन (१८ अप्रैल २०१२) आखिरकार आप भी समर्पण कर बैठे, और मैं इस सिंगलहुड की मशाल आपके हाथों से लेने के लिए भयंकर तैयारियों में जुटा था. जिसमे  नागिन धुन पे सड़क पे लोटने-पोटने का ख़्वाब.................उफ्फ्फ्फ़. मगर हर ख़्वाब भी शायद पूरा नहीं होता.

ख़ुशी जब बहुत ज़्यादा होती है तो वो जलनखोर उप्परवाला उसे तराजू के दुसरे पलड़े से बराबर कर देता है, और आप बेबस खड़े देखते रह जाते हो. कभी-कभी जब हम बहुत बेसब्री से किसी पल इंतज़ार कर रहे होते हैं और सोचते हैं कि इस लम्हे को थाम के अपने पास सहेज के रख लेंगे. मगर सोच तो आखिर सोच ही होती है, हकीक़त नहीं जबकि हकीक़त दूसरे मोड़ पर आपको थाम लेती है और वो लम्हा आपके सामने से बह जाता है, पानी की तरह जिसे आप हाथ में पकड़ने की भरपूर कोशिश तो करते हैं मगर वो या तो फिसल जाता है या भाप बनके आसमां में अधूरी ख्वाहिश की तरह उड़ जाता है. आपका ही ये शेर, आज बहुत कुछ कह रहा है-


"किसको मैं मुजरिम ठहराऊं, किसपे तू इल्ज़ाम धरे,
दिल दोनों का कैसे टूटा, मैं जानू या तू जानें!"

चलिए छोड़िये अब जो हो न सका उसपे ग़म करके क्यों बैठे. अभी तो जश्न का माहोल है,  हाँ उसमे उपस्थिति की कमी इसे मद्धम तो ज़रूर करेगी लेकिन कम तो बिलकुल नहीं, अरे कतई नहीं जी. क्योंकि 
"हिल हिल के नाचो नाचो ..............हिल हिल के"



4 comments:

कंचन सिंह चौहान said...

achchhe lag rahe ho tum saare bhoot.... :):)

रविकर said...

शुभकामनाएं ।

दिगम्बर नासवा said...

Arsh aur Mala ko Bahut Bahut shubhkamnayein ...

नीरज गोस्वामी said...

भाई बधाई हमारी और से भी...और हाँ...शादी के बाद घूमने के लिए खोपोली से अगर कोई दूसरी बेहतर जगह बताये तो उसकी बात मत मानना...बस चले आना ...जुलाई अंत से सितम्बर के बीच कभी भी...

नीरज