24 March 2008

ग़ज़ल - अब तलक मेरा रहा अब आपका हो जाएगा

बहरे रमल मुसमन महजूफ
२१२२-२१२२-२१२२-२१२

अब तलक मेरा रहा अब आपका हो जाएगा।
इस दिवाने यार दिल का कुछ पता हो जाएगा।

तू अगर चाहे तो तुझको मैं भुला दूँगा मगर,
है जो वादा धड़कनों से वो दगा हो जाएगा।

आज की ये ज़िन्दगी अब ताजगी खोने लगी,
याद कर बातें पुरानी सब नया हो जाएगा।

दिल जिगर में, धड़कनों में, रूह में तू बस गई,
बिन तिरे जीना बड़ा मुश्किल मिरा हो जाएगा।

इश्क में यारों ने हिम्मत तो बड़ा दी है "सफर",
सामने जब वो रहंगे सब हवा हो जाएगा।

2 comments:

Bharat said...

Kya khub likha hai Daksaab, aap to shayar ho chale...keep the gud work on..
:)

Mustfa Mahir said...

apni zameen to ho apna aasma to ho.
ham khul ke saans le sake aisa jaha to ho.in aandhiyo ka kya hai baaz aayein na aayein, aisa chiraag de mujhe jo javida to ho.