आप सभी को मेरा नमस्कार,
आज मैं जो हज़ल (हास्य ग़ज़ल) यहाँ लगा रहा हूँ, उसे आप गुरु जी और हठीला जी द्वारा आयोजित किए गए तरही मुशायेरे में पहले ही पढ़ चुके होंगे। अपने आप में अद्भुत मुशयेरा था ये, मैं भी पहली बार मसहिया ग़ज़ल लिखी है। अब आप ही बताएँगे की मैं अपनी इस कोशिश में कितना कामयाब रहा हूँ।
तुम्हारे शहर के गंदे वो नाले याद आते हैं।
उसी से भर के गुब्बारे उछाले याद आते हैं।
पकोडे मुफ्त के खाए थे जो दावत में तुम्हारी,
बड़ी दिक्कत हुई अब तक मसाले याद आते हैं।
भला मैं भूल सकता हूँ तेरे उस खँडहर घर को,
वहां की छिपकली, मकडी के जाले याद आते हैं।
बड़ी मुश्किल से पहचाना तुझे जालिम मैं भूतों में,
वो चेहरे लाल, पीले, नीले, काले याद आते हैं।
कोई भी रंग ना छोड़ा तुझे रंगा सभी से ही,
तेरी उफ़, हर अदा के वो उजाले याद आते हैं।
7 comments:
haasy ka satrang bikherti sundar rachna..
are ankit ji ye to gazab ki rachna likhi hai aapne....THANX
पकोडे वाला शेर सवा शेर है....नहीं नहीं....बब्बर शेर है...हा हा हा हा हा ...
नीरज
बहुत बढ़िया गजल है मित्र
अंकित
गजल तो पहले भी पढ़ चूका हूँ मक्ता बहुत अच्छा लगा मुझे
शायद आपने ध्यान नहीं दिया की गुरु जी जो मिश्रा देते है उसका प्रयोग हमें मतला में नहीं करना है
(ये बात इस लिए कही ताकि आप आगे से ध्यान रखे)
वीनस केसरी
वाह... वैसे तो पढ़ च़का था एक बार फिर बधाई..
vo masaale vaala sher baDa hi gaazab hai bhai
Too Good....
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