पिछली ग़ज़ल पे आप सब से मिली हौसलाफजाई और गौतम भैय्या से हुई बात को दिल में संजो कर आ गया हूँ एक छोटी बहर की ग़ज़ल के साथ। गुरु जी ने अपना बेशकीमती वक्त देकर इसे इस लायक बनाया है.
बहरे रमल मुरब्बा सालिम (२१२२-२१२२)
झूठ भी सच सा जहाँ है।
प्रेम की ये वो जुबां है।
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ये भला इज़हार कम है
बस ख़मोशी दरमियां है।
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सच बताऊँ बात इक मैं
उनके ख़त की भी ज़ुबां है।
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लोग पीछे जिस खुशी के
सोचता हूँ वो कहाँ है।
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बात घर की दब न पाई
आग बुझ के भी धुआं है।
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हो गया हूँ यूँ तो बूढा
तुमसे मेरा दिल जवां है।
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आज जो भी कुछ कहीं मैं
नींव बाबा और माँ है।
अभी तक के लिए ये ग़ज़ल फ़िर मिलेंगे जल्द ही......................... अरे रुकिए एक बात बताना तो भूल गया ही गया आप सबको, की मेरी अगली पोस्ट बहुत खूबसूरत होने वाली है, अब आप कहेंगे गुरूर में बोल रहा हूँ। अरे नही जनाब, दरअसल २४ अक्टूबर को भोपाल जा रहा हूँ (गुरु जी के करीब ही)..................और बम्पर न्यूज़ ये है की ३ महीने के लिए यानी बहुत कुछ सीख लूँगा गुरु जी से।
(नोट:- अगर कुछ लोग जल और चिढ रहे हों तो शुक्रिया, इसे लखनऊ से जोड़ा जाए तो बात समझ में आएगी और विस्तृत जानकारी वहीँ से मिलेगी)
(नोट:- अगर कुछ लोग जल और चिढ रहे हों तो शुक्रिया, इसे लखनऊ से जोड़ा जाए तो बात समझ में आएगी और विस्तृत जानकारी वहीँ से मिलेगी)
20 comments:
उम्दा ग़ज़ल है अंकित भाई.. लोग पीछे जिस ख़ुशी के वाला शेर बढ़िया है..
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल कही है अंकित तुमने.. हर शे'र लाजवाब .. वाह वाह पे दिल झूम रहा है मतला अलग कहर बरपा रहा है तो उसके तुंरत निचे का शे'र मार डालने वाला है भाई .. क्या खूब खयालात डाले है तुमने ... आखिरी शे'र मुनव्वर साहिब की याद दिला रही है ... फिर से आता हूँ ...
अर्श
jhhutth bhi sach ban jata hai..wo kuch is andaaz se kahte hai...hum sachi baat btane ko kasme khate rahte hai.......
bahut hi sundar gazal .....aise hi likhate raho.....
हमे तो उडते उदते खबर मिली कि ये शानदार गज़ल पढो खबर अर्श से मिले तो जरूर अच्छी ही होगी इस लिये भागी आयी और सच मे अच्छी गज़ल पढने को मिली।ुमदा गज़ल के लिये बधाई तुम्हारे गुरूजी का को भी बहुत बहुत बधाई जो ऐसे हीरे तराश रहे हैं शुभकामनायें
बहूत ही बेहद खुबसूरत, लाजवाब ग़ज़ल कही है अंकित जी आपने .......... शेर शेर सुभान अल्ला .........दिल झूम रहा है ...... सीधे सीधे शब्दों में कही है दिल की गहरी बात ........... और हां मुबारक ........... गुरु जी के करीब जा रहे हो ........ हमारा भी सलाम कह देना ,.....
हम्म्म...जलन तो उसी दिन से हो रही थी, जब तुमने फोन पर ये खबर दी। लखनऊ की तो लखनऊ हे जाने...
ग़ज़ल तो वाकई बहुत सुंदर बनी है अंकित। कुश की तरह मुझे भी "लोग पीछे जिस खुशी के" वाला शेर खूब पसंद आया। दूसरे शेर का मंतव्य तनिक देर से समझ में आया और जब आया तो बस वाह-वाह किये जा रहा हूँ।
संयोग देखो, अपनी अगली पोस्ट में जो ग़ज़ल मैं लगाने की सोच रहा हूँ वो भी इसी बहर पर है। अच्छा है, फिर से लिंक रखूँगा उदाहरणार्थ तुम्हारी इस ग़ज़ल का।
देखो आगया न फिर से शाम को मैं ,.. ग़ज़ल भाई वाकई अछि बनी है ,.. लखनऊ से बात हुई थी वहां से भी तारीफ मिल रहे है ... दूसरा शे'र मुझे वाकई बहुत पसंद है ... इस शे'र पर सब लिखा न्योछावर .. गुरु जी को मेरे तरफ से भी सादर प्रणाम कहना ... जलन ऊपर भी दिख रही है .. ज़रा संभल के ..ठीक......
अर्श
तुमसे कहा था ना कि ज़रा डरा करो सीनियर्स से... नही माने.. ठीक है अब तुम खुद ही समझना...! और सीधे जो शागिर्दी करने पहुँच रहे हो ना...! मैं सब समझ रहीं हूँ कि अब तो गुरु जी के पैर दबा दबा के, गुर सीखे जायेंगे....! इन सब का हिसाब होगा....! तुम बस संभल के रहो...! अभी तुम मुझे जानते नही हो...! मैं क्या क्या कर सकती हूँ....! गुर्रर्रर्रर्र
ये ब्लॉग अनामी टिप्पणियाँ क्यों नही लेता...??? यहाँ भी चालाकी....?????
हा हा हा
अरे कल रात से ही तुम्हारी तारीफें गुरुकुल के आश्रम से सुनाई दे रही हैं...मैं अभी आ सकी...! बहुत सुंदर...! ये
बस खामोशी दरमियाँ वाल शेर ....! वाह वाह ...! लाख टके की बात कही तुमने...!
खूब खुश रहो....! सफलता के सारे पायदानो को पार करो....!
ये तुम्हारी पहली सम्पूर्ण प्रभाव वाली ग़ज़ल है । बधाई पहली ग़ज़ल लिखने पर ।
बढिया ग़ज़ल हुई है अंकित भाई.
लोग पीछे जिस खुशी और ये भला इज़हार वाले शेर बहुत अच्छे हैं.
बेहतरीन.......... साधुवाद..
गुरुदेव का असर दिखाई पड़ रहा है आपकी ग़ज़ल पर...खूबसूरत और असरदार शेर एक से बढ़ कर एक हैं इस ग़ज़ल में....अब आप गुरुदेव की शरण में ही जा रहे हो तो कहना ही क्या...कमसे कम जाने से पहले बता तो देते तो हम भी श्रधा पुष्प आपके हाथ उन्हें भिजवा देते...ऐसे अचानक भोपाल चल दिए हो...कब जा रहे हो...कब आओगे...???
गुरुदेव के साथ अपनी एक फोटो ही भेज देना भाई...इतना तो कर ही सकते हो...
नीरज
ख़त की ज़ुबां...
अंकित बहुत बढ़िया ग़ज़ल है आखिरी शेर बहुत पसंद आया.
waah Ankit maqta kamaal hua hai
gazal khoobsurat hai
ग़ज़ल बहुत पसंद आई मुझे
खूबसूरत ग़ज़ल है..इतनी छोटी बहर पर ग़ज़ल लिखना चैलेंजिंग होता है..मगर शब्दों की मितव्ययिता का हुनर भी आता है...घर की बात वाला शेर बेहद सामयिक और सचबयानी वाला बना है..स्मोक डिटेक्टर की तरह...
..शुक्रिया गौतम साहब का..्
जिनके ब्लॉग से पता मिला!!!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
आभार एवं शुभ कामनाएं
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अच्छी संभावनायें हैं आपमें। बहुत उम्दा अशआर हैं। बस एक मिसरा थोड़ा खटक रहा है। 'सच बताउँ बात एक मैं' को 'सच बताउँ बात इक मैं' करके देखिये।
अभी तो पॉंव रक्खा है ज़मीं पर,
एक लंबा सा 'सफर' बाकी बचा है।
आपकी इस ग़ज़ल के लिये आपको पूरे अधिकार के साथ मक्ता सप्रेम भेंट कर रहा हूँ:
जिंदगी के इस 'सफर' में
दश्त है औ गुलिस्तॉं है।
तिलक राज कपूर
vaah beta maxza aa gaya
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