तक़रीबन एक महिना होने को आ गया है और ब्लॉग ख़ामोशी ओढ़ के बैठा हुआ था मगर कर भी क्या सकते हैं, थोड़ी व्यस्तता ही रही या कहूं पूरी व्यस्तता रही और वक़्त ही नहीं मिल पा रहा था. इस बेबसी के आलम में लगता था कि ब्लॉग कहीं बेकग्राउंड में "दिल ढूँढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन.........." गाना बजा रहा है और बुला रहा है।
(चित्र:- सागर, मध्य प्रदेश)
चलिए इस वक़्त की कंजूसी को बाय-बाय कहते हुए हाज़िर हूँ एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ, गुरुदेव पंकज सुबीर जी द्वारा इस्लाह की गयी ये ग़ज़ल अब आपके रूबरू है।
ख़्वाबों में माज़ी के कुछ धुंधलें अफ़साने मिलते हैं
छाँव तले पीपल की बैठे लोग सयाने मिलते हैं
प्यासी धरती माँग रही कब से थोड़ी बारिश लेकिन
मेघों की साहूकारी में सिर्फ़ बहाने मिलते हैं
दूर नदी परबत की बाहों में उमड़े तो लगता है
दुनिया की नज़रों से छिपकर दो दीवाने मिलते हैं
अंगड़ाई जब भी लेते बीते लम्हें बेचैनी में
फूल तुम्हारी यादों के मुझको सिरहाने मिलते हैं
बड़े बुजुर्गों की बातें लगती हैं पीर फ़क़ीरों सी,
उनकी संगत में बैठो तो छिपे ख़ज़ाने मिलते हैं
वक़्त बदल देता है चेहरे और इन्सां की नीयत भी
कसमों-वादों की गलियों में अब वीराने मिलते हैं
[त्रैमासिक 'नई ग़ज़ल' के जुलाई-सितम्बर 2011 अंक में प्रकाशित]
24 comments:
अंकित जी लाजवाब गज़ल है किस किस शेर की तारीफ करूँ सभी एक से बढ कर एक है। वाकई सुबीर जी ने अपने शिष्य बहुत अच्छे से साध रखे हैं\ बधाई और शुभकामनायें
मेघोंकी साहूकारी अच्छा और नया प्रयोग है। ग़ज़ल अच्छी है - लिखते रहिए…
अंकित जी
अरसे बाद आप ब्लॉग पर दिखे....अच्छा लगा....!
ग़ज़ल हमेशा की तरह लाजवाब है
" दूर नदी परबत की बाँहों में उमड़े" ......क्या प्रेम का विम्ब खींचा है मित्र....अति सुन्दर !
मेघों की साहूकारी .....बहुत ही मनभावन प्रयोग किया. हमारी बहुत बहुत शुभकामनाएं....और हाँ ब्लॉग पर सिलसिला बनाये रखिये....!
'मेघोंकी साहूकारी' और 'दूर नदी परबत की बाँहों में उमड़े" मनभावन प्रयोग है. अच्छी ग़ज़ल है
वाह गुरू तुम तो छा गये... क्या गज़ल कही है.... हर शेर बेहतरीन और लग रहा है कि युवा अंकित ने बरसात में मजबूर हो कर गज़ल लिख दी इतने भाव बन गये कि बस बरस गये।
बहुत खूब.. बहुत ही अच्छी गज़ल। किसी एक शेर को उठा कर गज़ल का महत्व नही कम करूँगी।
शुभाशीष
वाह गुरू तुम तो छा गये... क्या गज़ल कही है.... हर शेर बेहतरीन और लग रहा है कि युवा अंकित ने बरसात में मजबूर हो कर गज़ल लिख दी इतने भाव बन गये कि बस बरस गये।
बहुत खूब.. बहुत ही अच्छी गज़ल। किसी एक शेर को उठा कर गज़ल का महत्व नही कम करूँगी।
शुभाशीष
दूर नदी परबत की बाहों में उमड़े, तो लगता है
दुनिया की नज़रों से छिप कर दो दीवाने मिलते हैं
वाह-वा !!
ग़ज़ल के तक़ाज़ों को पूरा करते हुए
अपनी पूरी बात कहता हुआ ला-जवाब शेर ...
अंकित की ग़ज़ल का तिलिस्म ... देर तक ज़हन पर तारी रहता है
ये बात बिलकुल सच है....
सच !!
प्यासी धरती मांग रही है ......
दूर नदी परवत की बाहों .......
बड़े बुजुर्गों की बातें ..........
वाह अंकित भाई कमाल के शेर है, पहली बार जब आपसे ये शेर सुने थे तो गजल पूरी नहीं हुई थी, सीहोर की वो नशिस्त मेरे लिए इस मायने में भी यादगार रही है कि वहाँ ही आपसे ये शेर सुने थे. खास कर पहला; दूर नदी ... वाह वाह दिल खुश हो गया था
एक दूसरा शेर जिसका मिसरा है..- मैंने सोचा उसे .... इन दो शेर का जादू कभी नहीं उतर सकता मेरे दिलो दिमाग से
आज भी मन आनंदित हो गया
एक निवेदन है, चौथे शेर के पहले शब्द को सही कर दें, एक पल को भ्रम हो रहा है कि अंगराई शब्द का सही उच्चारण अमराई है या अंगडाई और इस एक पल के भ्रम से अटकाव पैदा हो रहा है
Mast Gazal
अंकित उस्ताद को हमारा फर्शी सलाम...क्या ग़ज़ल कही है...दिलो जान लूट लिए आपने...खाकसार की दाद कबूल करें...गुरूजी का नाम रोशन करने में तुम्हारा नाम हम जैसों से बहुत आगे होगा..ये हमारे लिए ख़ुशी और फक्र की बात है...
नीरज
बहुत अच्छी ग़ज़ल है दोस्त...
प्यासी धरती मांग.............
और
बड़े बुज़ुर्गों की ...............
ये दोनों ही बहुत उम्दा हैं और हक़ीक़त बयान कर रहे हैं
बहुत ख़ूब १
बहुत प्यारी गजल है।
मक्ते का शेर..वाह! क्या कहना !
..ढेरों बधाई।
बहुत बढ़िया अंकित भाई..बेहतरीन लिखा....लाज़वाब ग़ज़ल के लिए शुक्रिया...
आप सभी का शुक्रिया, मेंरी कोशिश रहेगी कि अच्छा लिखता रहूँ.
@ निर्मला कपिला जी
आपको ग़ज़ल पसंद आई, बहुत अच्छा लगा, गुरु जी से सीखी हुई बातों को थोडा बहुत भी अपनी रचनाओं में उतार पाया तो मेरी लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी.
@ सिंह साहेब
ब्लॉग पे सिलसिला बनाये रखूँगा, कभी कभार व्यस्तता इतनी हो जाती है कि वक़्त नहीं मिल पाता, सोचने के लिए भी और लिखने के लिए भी.
@ कंचन दीदी
आप आई बाहर आई, सच में यहाँ तो हर रोज़ बरसात है, भाव भी बरस रहे हैं, पिरोने की कोशिश में लगा हूँ और जो कुछ संजों सका, वो ग़ज़ल के रूप में आ गए.
@ मुफलिस जी,
आपका ये सच ही मेरे लिए बहुत बड़ा कॉम्प्लीमेंट है मैं कोशिश करूँगा कि और उम्दा लिखूं.
@ वीनस भाई,
अंगड़ाई अब एकदम सही तरीके से अंगड़ाई ले रहा है, आपको ग़ज़ल पसंद आई अच्छा लगा.
@ नीरज जी
उस्ताद तो आप हैं, मुझे शर्मिंदा मत करें ये कहके, कोई आगे पीछे नहीं सब साथ हैं और सब मिलके गुरु जी का नाम रोशन करेंगे.
हिमांशु जी, संजीव जी, तारकेश्वर जी, साजिद जी, इस्मत जी, बेचैन जी, विनोद जी
आप सभी को मेरी ये कोशिश पसंद आई अच्छा लगा.
बहुत मुश्किल से अपने शेर ख़ुद को पसंद आते हैं मगर इस ग़ज़ल में कुछ शेर हैं जिनपे मुझे लगता है हाँ थोडा अच्छा लिखा है.
अंकित मेरी तारीफ़ को बहुत सारी समझना। मैं बहुत ज़्यादा प्रसन्न होकर तारीफ़ कर रहा था - कम न समझना। मुझे तारीफ़ कर नहीं आती, सुनने में अच्छी ज़रूर लगती है। मेरा दोबारा यहाँ आना अपने आप में इस बात का सबूत है कि मैं क्यों आता - अगर पसन्द न करता तो।
जब ज़्यादा ही पसन्द आ जाता है तो कुछ कह कर चला जाता हूँ उसी अन्दाज़ में - यही मेरी तारीफ़ का तरीक़ा है, मगर कभी-कभी लोग ये न सोच लें कि या तो ये शख़्स पैरोडी कर रहा है - या होड़ लगा रहा है - इस ख़्याल से कभी-कभी बस "अच्छा लगा" कह कर निकल लेता हूँ।
आज भी अगली रचना की उम्मीद लेकर आया था…
इस ग़ज़ल को तुम्हारी ज़बान से सुन चुका हूँ , और तभी से इसके दो एक शे'र मेरे पसंदीदा शेरों में शामिल हैं... सीहोर में इस ग़ज़ल से तुम छा गए थे ... बहुत बहुत बधाई अंकित फिर से इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए ... हाँ वो दो दीवाने वाला शे'र हासिले ग़ज़ल है .......
अर्श
'door ndi parbat ki.....
duniya ki....................'
sir kamaal kr diya!
'door ndi parbat ki.....
duniya ki....................'
sir kamaal kr diya!
बड़े दिनों बाद तुम्हें फिर से पढ़ने का मौका मिला और वाह-वाह कुआ मौका मिला है...
इस ग़ज़ल की रिकार्डिंग अभी भी मेरे मोबाइल में है तुम्हारी आवाज में...उस समय भी तुम्हारे इस शेर पर "दुनिया की नजरों से छिपकर दो दीवाने मिलते हैं" निछावर हुआ था..अभी फिर से हुआ हूं।
लिखते रहो और तनिक जल्दी-जल्दी आया करो...
अंकित भाई,
लाजवाब गज़ल है. उस्ताद शायरों जैसी.
बधाई.
मेघों की साहूकारी में सिर्फ बहाने मिलते हैं!
क्या बात है!! बहुत खूब!!
माओवादी ममता पर तीखा बखान ज़रूर पढ़ें:
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
वाह अंकित जी, आपकी ग़ज़ल एक अलग ही दुनिया में ले गई थी।बधाई! प्लीज कीप इट अप...
Post a Comment