ऐसा लग रहा है जैसे सूरज टुकड़े-टुकड़े होकर ज़मीन पर गिर रहा है। वैसे तो ये हर साल का किस्सा है, मगर इस दफे तो थोडा वक़्त से पहले ही आग़ाज़ हो चुका है। आहिस्ता आहिस्ता बढ़ती तपिश, नमी के साथ मिलके साजिशें रचना शुरू कर चुकी है। अब तो बरसात का इंतज़ार है।
फोटो - निखिल कुंवर
गर्मियों की दुपहरी के कुछ रंग अपने अंदाज़ से पिरोने की कोशिश की है, पढ़िए और बताइए वो कोशिश कितनी कामयाब हो पाई है।
जिस्म से बूंदों में रिसती गर्मियों की ये दुपहरी
तेज़ लू की है सहेली गर्मियों की ये दुपहरी
शाम होते होते सूरज की तपिश कुछ कम हुई पर
चाँद के माथे पे झलकी गर्मियों की ये दुपहरी
भूख से लड़ते बदन हैं, सब्र खोती धूप में कुछ
हौसले है आज़माती गर्मियों की ये दुपहरी
बर्फ के गोले लिए ठेले से जब आवाज़ आये
दौड़ नंगे पाँव जाती गर्मियों की ये दुपहरी
उम्र की सीढ़ी चढ़ी जब, छूटते पीछे गए सब
क्यूँ लगे कुछ अजनबी सी गर्मियों की ये दुपहरी
छाँव से जब हर किसी की दोस्ती बढ़ने लगी तो
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी
आसमां अब हुक्म दे बस, बारिशें दहलीज़ पर हैं
लग रही मेहमान जैसी गर्मियों की ये दुपहरी
4 comments:
बहुत खूब ...गर्मियों की ये दुपहरी !
बहुत ही खूब गज़ल है...गर्मियों की दुपहरी का बहुत ही खूबसूरत चित्रण
वाह क्या लाजवाब चित्रण है इस दोपहरी का ...
छाँव से जब हर किसी की दोस्ती बढ़ने लगी तो,
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी.
आसमां अब हुक्म दे बस, बारिशें दहलीज़ पर हैं,
लग रही मेहमान जैसी गर्मियों की ये दुपहरी.
ये दो शेर पिछली बार भी एकदम मन को छूने वाले थे...!!
जानते हो अंकित पिछली गर्मियों मे ना आधा समय घूमघुमा कर सिद्धार्थनगर मे ही गुजरा और आँधी पानी के साथ वो बेचैनी नही रही जो होनी चाहिये गर्मियों में, तो जब पहली बारिश आई मानसून की तो, उतना उल्लास भी नही ला पायी।
इस बार फिर वही ४५ ४६ डिग्री पारा...रात भर कूलर को हराती उमस..दिन में लूह की बेचैनी.. तो वर्षा के इंतज़ार को एकदम बढ़ा देती है।
लगता है किसी चीज़ को पाने का मजा तभी है, जब उसे ना पाने की ख़लिश चरम पर जी ली जाये और इतने सब के बाद जब बरसात आयेगी ना उस से नज़रे हटाने का मन नही होगा, खुदा ना खास्त अगर घर में रही, तो खूब खूब भीग लूँगी उस बारिश में.... तो ये होता है असली आनंद, जो बहुत सारी बेचैनी के बाद आता है।
एक बात और तिथि के अनुसार मेरा जन्म सावन के पहले दिन हुआ था। मैं हमेशा माँ से कहती थी कि मेरा नाम रिमझम क्यो नही रखा ? सोचो तुम्हे रिमझिम दीदी कहते कैसा लगता ?
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