आहिस्ता-आहिस्ता मुंबईया बारिश, शहर को अपनी उसी गिरफ्त में लेती जा रही है, जिसके लिए वो मशहूर है। यकीनन इस दफ़ा कुछ देर ज़रूर हुई मगर उम्मीद तो यही है कि बचे-खुचे वक़्त में उसकी भी कोर कसर पूरी हो जाएगी। अगर आपके शहर में बारिश नहीं पहुंची है तो जल्दी से बुला लीजिये और अगर पहुँच चुकी है तो लुत्फ़ लीजिये।
('जुहू बीच' पर कुछ बेफ़िक्र लहरें )
फिलहाल तो मैं यहाँ पर आप सब के लिए अपनी एक हल्की -फुल्की ग़ज़ल छोड़े जा रहा हूँ। पढ़िए और बताइए कैसी लगी?
अपने वादे से मुकर के देख तू
फिर गिले-शिकवे नज़र के देख तू
इक नया मानी तुझे मिल जायेगा
मेरे लफ़्ज़ों में उतर के देख तू
कोई शायद कर रहा हो इंतज़ार
फिर वहीं से तो गुज़र के देख तू
हर किनारे को डुबोना चाहती
हौसले तो इस लहर के देख तू
ज़िन्दगी ये खूबसूरत है बहुत
हो सके तो आँख भर के देख तू
ख़्वाब की बेहतर उड़ानों के लिए
नींद के कुछ पर कतर के देख तू
फूलती साँसें बदन की कह रहीं
आदमी कुछ तो ठहर के देख तू
कह रही 'ग़ालिब' की मुझ से शायरी
डूब मुझ में फिर उभर के देख तू
17 comments:
बढ़िया |
बधाई महोदय ||
बेहद कमाल का मतला.. वाह वाह, क्या ख़ूब कही है ! लहर और किनारे पर वेसे तो बहुत सारे शे'र कहे गये हैं मगर ये लहजा भी पसन्द आया, बेहद ममनून हूँ इस शे'र के इस लहजे पर !ज़िन्दगी वाला शे'र भी बेहद सुन्दर ! फूलती साँसे वाले शे'र ने चौका दिया ! वाह क्या कमाल का शे'र बुना है भाई ! शायद यही वो ग़ज़ल थी.. जिसकी बडाई गुरूदेव कर रहे थे ! एक अच्छी ग़ज़ल के लिये बहुत बधाई ! दिनों बाद आये मगर छा गये !
अर्श
वाह वाह. अंकित.
बहुत ही खूबसूरत गज़ल.
क्या मतला है.. कमाल.
"अपने वादे से मुकर के देख तू। / फिर गिले-शिकवे नज़र के देख तू।"
इक नया मानी तुझे मिल जायेगा,/मेरे लफ़्ज़ों में उतर के देख तू।..... बहुत उम्दा.
कोई शायद कर रहा हो इंतज़ार,/फिर वहीं से तो गुज़र के देख तू।..... कमाल.
हर किनारे को डुबोना चाहती,/ हौसले तो इस लहर के देख तू।....... वाह. हौसले तो इस लहर के देख तू.
ज़िन्दगी ये खूबसूरत है बहुत,/हो सके तो आँख भर के देख तू।..... बहुत बढ़िया.
ख़्वाब की बेहतर उड़ानों के लिए,/ नींद के कुछ पर कतर के देख तू। .... बहुत ही गहरा और नया ख्याल.
फूलती साँसें बदन की कह रहीं,आदमी कुछ तो ठहर के देख तू।... वाह. खूब.
कह रही ग़ालिब की मुझ से शायरी,/डूब मुझ में फिर उभर के देख तू।... पूरी तरह से मुकम्मल और बेहद खूबसूरत गज़ल. दिल खुश हो गया.
अंकित झंडे गाड़ दिए भाई...क्या खूबसूरत शेर बुने हैं...सलीकेदार...शेर क्या हैं चमकदार नगीने हैं नगीने...किस शेर को अलग से कोट करूँ? मकते से मतले तक का पूरा सफ़र बेहद हसीं है...जियो बरखुरदार...जियो
नीरज .
शुक्रिया जनाब.
शुक्रिया अर्श भाई, आप को पसंद आई अच्छा लगा. अब ये तो आपको गुरुदेव से ही पूछना पड़ेगा कि ये वही ग़ज़ल है या फिर वो बड़ाई वाली ग़ज़ल कोई और है. :-D
इस हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.
शुक्रिया सर जी, आपकी चाशनी से भी मीठी मुबारकबाद आगे आने वाले शेरों और ग़ज़लों में और अच्छे से उड़ेलने की कोशिश करूँगा.
इक नया मानी तुझे मिल जायेगा,
मेरे लफ़्ज़ों में उतर के देख तू।
बहुत ख़ूबसूरत शेर है अंकित
ज़िन्दगी ये खूबसूरत है बहुत,
हो सके तो आँख भर के देख तू।
मुहावरे का बेहतरीन इस्तेमाल है बेटा ,शेर में मुहावरे का इस्तेमाल आसान नहीं लगता मुझे
ख़्वाब की बेहतर उड़ानों के लिए,
नींद के कुछ पर कतर के देख तू।
नींद के पर कतरने की बात में एक नयापन है बल्कि यूँ कहूं कि ख़याल में ही नयापन है
ख़ुश रहो ,,ऐसे ही लिख्ते रहो
itna dard kha se le aate ho tum anku bhai....mtlb source kya h tumhari shayrio ka?
इस्मत दी, इन शेरों को इतनी मुहब्बत से नवाज़ने के लिए शुक्रिया.
गप्पू भाई, बहुत आसान सा दिखने वाला मगर मुश्किल सवाल पूछ लिया है. फिलहाल मैं तो एक जरिया हूँ और शायद सोर्स भी............ :-)
इक नया मानी तुझे मिल जायेगा,
मेरे लफ़्ज़ों में उतर के देख तू।
मतला और आगे हर शे’र पर आपकी छाप और कोशिश साफ़ दीख रही है. उपरोक्त शे’र के लिये विशेष बधाई.
बहुत खूब.
सौरभ पाण्डेय
शुक्रिया सौरभ जी.
अंकित जी! नमस्कार!
गज़ल पढ़ी, बार-बार पढ़ी, फिर पढ़ी ...और फिर पढ़ी ......
एक-एक शेर बड़ी ख़ूबसूरती से तराशा हुआ। लहरों की हिम्मत वाकई काबिले तारीफ़ है। लहरों ने ज़िन्दगी की हर शह और मात को जी भर के जिया है....तारीफ़ तो होनी ही है।
कौशलेन्द्र जी, ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया.
gajab dha diya hai...wah wah..
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