05 October 2008

ग़ज़ल - तू यकीन मेरा है, मैं यकीन तेरा हूँ

भूख प्यास जिंदा है सब के ही निवालों में।
पत्तलों में हो या सोने के राज थालों में।


तू यकीन मेरा है, मैं यकीन तेरा हूँ,
हम उलझ गए दोनों बेवजह सवालों में।


दीप वो लड़े शब से जान डाल जोखिम में,
भूल सब गए हम वो सुबह के उजालों में।


दौड़ता है रग-रग में खू नया उमंगों का,
तुम भरो मसाला ये सत्य की मशालों में।

5 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अंकित जी,बहुत ही बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।

योगेन्द्र मौदगिल said...

Jeete raho.......
lage raho..........
kahte raho...........
isi dhara me bahte raho..bahte raho..............................

पंकज सुबीर said...

अच्‍छी रचना है और गहराई लाने की कोशिश करों ताकि रचना में सम्‍पूर्णता आये । प्रयास करते रहो । लिखते रहो लिखते

Ankit said...

ji guru ji, zaroor bas aap margdarshan karte rahe.

नीरज गोस्वामी said...

Ankit Ji
Aap ko Pankaj Ji ka margdarshan mil raha hai...badhaii...aap jaroor ek din bahut naam kamaoge...aap ki ghazal men wo sab khoobiyan dikh rahi hain jo aap ko ek achchha shayar bana sakti hain...bahut khoob.
neeraj