मुंबई में बारिश ने दस्तक दे दी है और मेरे घर पे कुछ खास अंदाज़ में दी है। अपने नए मेहमान का इस्तकबाल कुछ खास तरीके से किया जिसे वो शायद भुला ना पाए। हर शनिवार और रविवार को ऑफिस में काम करना मना है सीधे कहूं तो छुट्टी है। मैं इसी मौके का फायदा उठा कर अपने दोस्तों से मिलने निकल जाता हूँ, और वापसी होती है रविवार की रात को। दोस्तों के साथ रिमझिम बरस रही बारिश की बूंदों का लुत्फ़ उठाया तो बचपन की पुरानी यादें ताज़ा हो गई, याद आ गए वो दिन जब भीगने के बहाने ढूँढा करते थे और घर में भीगने में डांठ इंतज़ार करती थी. इसी मौज़ूँ पे लिखा हुआ एक शेर याद आ रहा है.........
शायद बारिश ने मेरी ब्लॉग पे की गई पिछली पोस्ट पढ़ी होगी "घर में कोई मेहमां आने वाला है...." और सोचा होगा चलो इसके घर पे दस्तक दे ही दूँ, बेचारा किसी को पुकार रहा है। घर का दरवाजा खोला तो पहली नज़र में कुछ नज़र नही आया क्योंकि कमरे में बिखरा अँधेरा मुझे देखने की इजाज़त नही दे रहा था मगर जैसे ही रौशनी ने उसके इरादे रोके और आंखों को खुल के देखने की रास्ता दिया तो एक अलग ही मंज़र था उन बेबस नज़रों के सामने.............
........कमरे में आया हुआ पानी मुस्कुरा के कह रहा था कैसे हो, दो दिन मज़े में काट के आ गए अब और मज़े लो, वैसे ज़्यादा कुछ सामान तो अभी जोड़ा नही मगर जितना भी था वो मेरी ज़रूरत के हिसाब से बहुत था मगर पानी अपनी बाहों में भर के उन सब का बोसा ले रहा था और उसके शिकार हुई मेरी डायरी, मेरे सोने का गद्दा और कुछ बदनसीब कागज़। बस अब एक ही काम रह गया था पानी को बा-इज्ज़त उसका सही रास्ता दिखने का। वो रात तो लिखी थी फर्श के नाम और सोने का अब वो ही ठिकाना था..............मगर उसका भी एक अलग मज़ा था जो ज़िन्दगी भर एक याद बन के जिंदा रहेगा और आगे सम्हल के रहने की हिदायत देगा मुंबई की बारिश से।
इस पोस्ट को इसके अंजाम तक पहुँचने से पहले, दो आज़ाद शेरों को आपके हवाले कर रहा हूँ................
"माँ की डांठ नही भूले,
जब बारिश में भीगे थे."
मलाड से वापसी पे मौसम बहुत सुहाना था, हवा ने ताज़गी की चादर ओढ़ ली थी और वो एक खूबसूरत एहसास दे रही थी। अपने ठिकाने की ओर बढता हुआ जब कमरे की सिम्त जा रही सीढियों पे चढ़ रहा था तो उनपे लिपटी हुई मिटटी और गुज़रे हुए लोगों के क़दमों के निशाँ गवाही दे रहे थे की आज बारिश ने लोगों को एक सुकून भरी साँस दी है, रोज़ की चिलचिलाती धूप से।जब बारिश में भीगे थे."
शायद बारिश ने मेरी ब्लॉग पे की गई पिछली पोस्ट पढ़ी होगी "घर में कोई मेहमां आने वाला है...." और सोचा होगा चलो इसके घर पे दस्तक दे ही दूँ, बेचारा किसी को पुकार रहा है। घर का दरवाजा खोला तो पहली नज़र में कुछ नज़र नही आया क्योंकि कमरे में बिखरा अँधेरा मुझे देखने की इजाज़त नही दे रहा था मगर जैसे ही रौशनी ने उसके इरादे रोके और आंखों को खुल के देखने की रास्ता दिया तो एक अलग ही मंज़र था उन बेबस नज़रों के सामने.............
........कमरे में आया हुआ पानी मुस्कुरा के कह रहा था कैसे हो, दो दिन मज़े में काट के आ गए अब और मज़े लो, वैसे ज़्यादा कुछ सामान तो अभी जोड़ा नही मगर जितना भी था वो मेरी ज़रूरत के हिसाब से बहुत था मगर पानी अपनी बाहों में भर के उन सब का बोसा ले रहा था और उसके शिकार हुई मेरी डायरी, मेरे सोने का गद्दा और कुछ बदनसीब कागज़। बस अब एक ही काम रह गया था पानी को बा-इज्ज़त उसका सही रास्ता दिखने का। वो रात तो लिखी थी फर्श के नाम और सोने का अब वो ही ठिकाना था..............मगर उसका भी एक अलग मज़ा था जो ज़िन्दगी भर एक याद बन के जिंदा रहेगा और आगे सम्हल के रहने की हिदायत देगा मुंबई की बारिश से।
इस पोस्ट को इसके अंजाम तक पहुँचने से पहले, दो आज़ाद शेरों को आपके हवाले कर रहा हूँ................
"बोलने के झूठ सब आदी हुए यारों,
बिन बनावट सच कहाँ बेबाक आए है।
फ़ोन ने, ई-मेल ने लम्हें हसीं छीने,
प्यार का वो ख़त कहाँ अब डाक आए है।"
aa
11 comments:
अंकित जी जब जरा सी बारिश ने ये हाल किया है कमरे का तो सोचिये जब मुंबई की बारिश शबाब पर होगी तब क्या हाल होगा...मेरी बात माने तो रहने की जगह बदल लें...अभी मौका है...
शेर बहुत अच्छे लगे...जल्दी ही मिलते हैं...
नीरज
वाह अंकित जी बहुत ख़ूब बयाँ किया हाले-दिल बादे-बारिश!
bkaha aapneahut hi sahi .........sundar
प्रिय भाई अंकित,
बहोत बढ़िया तरीके से आपने बारिश और उसकी गुस्ताखी को बयान किया है आपने... मगर बस एक ही याद हमेशा के लिए रहे तो बहोत बढ़िया है ... नीरज जी की कहा मानो और ठिकाना बदल लो... आपके बेबाक शे'र बहोत पसंद आये ... बहोत बहोत बधाई
अर्श
वाह भाई अंकित आज तो आपको पढना बहुत सुखद रहा
बारिश की खबर ही शांतिदायक है
शेर भी पसंद आये
वीनस केसरी
उम्दा लेखन!
भई वाह..... क्या बात है....... कमरे ने भी लुत्फ़ उठा लिया....
दिलचस्प वर्णन बारिश के इस रूप का...
बोलने के झूब सब आदी हुये यारों वाला शेर खूब बना है..
पूरी ग़ज़ल सुनाओ जल्दी से !
Wah kya kahi hai
bin banawat sach kahan bebaak aaye hain kamaal kaha hai
barish to achhi hoti hai mor ke saath man bhi jhum uthta hai
अंकित जी,
आपकी गजलें प्यारी होती हैं और बाद में इमानदारी से आप उसकी समालोचना भी कर देते हैं जो प्रभ छोड़ती हैं और आपको गुरूजी की शागिर्दी का लाभ भी होता है...लगे रहें...
बढिया है अंकित भाई. शेर भी और आपका गद्य भी. शैली में रवानगी है.
Post a Comment