चंदा मामा कांच की कटोरी कहाँ हैं?
रहती थी जो हर जुबां पे लोरी कहाँ हैं?
झूठी लगती हैं अनाज सड़ने की बातें,
लाला सच को बोल दो वो बोरी कहाँ हैं?
रहते हैं अब मॉम डैड सब की जुबां पे,
अब वो बाबा और मैय्या मोरी कहाँ हैं?
उलझे इतने हैं सभी किताबों में आजकल,
उस बचपने नादान की वो चोरी कहाँ हैं?
रह के तेरे साथ ग़म खुशी को जिया है,
तुमने छोड़ी हमने भी बटोरी कहाँ हैं?
4 comments:
प्रिय अंकित तुम्हारी ग़ज़लें देख रहा हूं और ये पा रहा हूं कि तुम कठिन काफिया और रदीफ के चक्कर में उलझे हो और उसी के कारण भर्ती के काफिये और रदीफ लेने पड़ रहे हैं । मैनं पिछली कक्षाओं में बताया है कि ज़रूरी नहीं है कि कठिन काफिया और रदीफ ही लिया जाये । सरल काफियों पर भी बेहतरीन ग़ज़लें लिखी गईं हैं । ग़ालिब की मशहूर ग़ज़लें बहुत सरल काफियों पर हैं । तुम्हारी पिछली दोनों ग़ज़लें कठिन काफियों और कठिन रदीफों का शिकार हैं । इससे बाहर निकलो और आम बोलचाल की भाषा में लिखो जैसे ग़ालिब कहते हैं कि हरेक बात पे कहते हो तुम के तू क्या है तुम्हीं कहो के ये अंदाज़े ग़ुफ्तगू क्या है । सरल लिखो पर गहरा लिखो । कठिन लिखोगे तो उथला हो जायेगा ।
गुरु जी, आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा, आप इसी तरह से मार्गदर्शन करते रहे.
अंकित जी भाव तो बहुत अच्छे हैं,मगर गुरू जी की बातों को गांठ बांध ले...मैं भी यही गलतियाँ किया करता था.
सुबीर जी के मार्गदर्शन में रहोगे
तो बात वज़्नोंबह्र में कहोगे
bhai ye word verification hat sakta hai kya ?
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