18 October 2008

ग़ज़ल - जो है ग़लत उसका इंक़लाब करता है..

जो है ग़लत उसका इंक़लाब करता है।
तुम ही बताओ वो क्या ख़राब करता है।
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एक बात छोटी सी तुम दिमाग में रखना,
मुश्किल में ही इंसा लाजवाब करता है।
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करते रहो नेकी और बढ़ चलो आगे,
कोई भला क्या गिन के सबाब करता है।
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मुझसे निगाहें मिल के निगाह का झुकना,
तेरी अदाओं को कामयाब करता है।
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कोई मुहब्बत में ख़त कहीं जलाता है,
कोई कहीं उनको इक किताब करता है।

4 comments:

श्रीकांत पाराशर said...

Kafi achhi rachna. padhkar achha laga.

Reetesh Gupta said...

बहुत अच्छे ...अच्छा लिखा है भाई...यू ही लिखते रहें....बधाई

वीनस केसरी said...

बढ़िया है भाई
और गुरु जी की क्लास में आ रहे हो या नही ?

वीनस केसरी

पंकज सुबीर said...

अरे गुरूजी की कक्षायें तो म.प्र. विद्युत मण्‍डल ने बंद करवा रखी हैं दिन भर में दस से बारह घंटे की कटौती के बाद क्‍या तो गुरूजी कक्षायें लें और क्‍या टिप्‍पणी दें । खैर अंकित पिछली ग़ज़ल से कमजोर ग़ज़ल है ये ।