1)
नटखट बचपन मेरा है, उसको नटखट ही रहने दो।
पागल आवारा दिल को मस्ती अल्हड में बहने दो।
मैं बूढा हूँ तो क्या जो सच है मुझको वो कहने दो।
कुछ और ही सोचा है मैंने, मुझे भरोसा है उस पर।
मैंने बुनी अपनी दुनिया, मुझे भरोसा है उस पर।
तुम कौन हो मुझको बतलाते, ग़लत सही की परिभाषा,
मुझसे मिरा हक छीनो, ये हक मैंने नही दिया तुमको।
२)
मैं जनता हूँ बेचारी जो चुनती सरकारें सत्ता।
मैं भाषा हूँ तुम लोगो की, बोले मुझको हर बच्चा।
मैं सच हूँ ये सब जाने पर कौन यहाँ सच की सुनता।
कुछ मैंने तुमसे कहा नही, जब तुमने करी अपने मन की।
सब कुछ तो मैंने सहा सभी, जब तुमने करी अपने मन की।
तुम कौन हो मुझको बतलाते, ग़लत सही की परिभाषा,
मुझसे मिरा हक छीनो, ये हक मैंने नही दिया तुमको।
6 comments:
टिप्पणी करने का तो हक़ होगा। अच्छा लिखा।
अच्छा लिखा है आपने...
उत्तम विचार
काव्यमयी सही बात के लिये
साधुवाद स्वीकारें
अंकित जी
बढिया प्र्स्तुति है दोस्त.
आप सभी का धन्यवाद्,
- अंकित सफ़र
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