अब तीरगी को मात ये देकर ही बुझेगा।
लड़कर हवा से ये दिया जोरों से जलेगा।
.
मेरी बुलंदी का धुआं यारों मत बनाओं,
किस को ख़बर है किस की ये आंखों में चुभेगा।
.
तह पड़ चुकी है गर्द की रिश्तों पे यहाँ यूँ,
पोछा गया तब कुछ नया ताज़ा सा दिखेगा।
.
चाहे बड़ा कितना भी हो जाऊँ, माँ के आगे,
दर पे झुका है सर मिरा झुकता ही रहेगा।
.
अच्छा सलीका है सिखाने का यार उसको,
वो खुदबखुद ही सीख जाएगा जब गिरेगा।
.
मैंने हुनर में रख तराशा है एक संग जो,
ऊँचे अगर, मैं दाम रख बेचूं तो बिकेगा।
7 comments:
चाहे बड़ा कितना भी हो जाऊँ, माँ के आगे,
दर पे झुका है सर मिरा झुकता ही रहेगा।
.
अच्छा सलीका है सिखाने का यार उसको,
वो खुदबखुद ही सीख जाएगा जब गिरेगा।
waah gazab ki baat kahi,bahut hi badhiya badhai
aakhiri sher katilana ,sath me mukkamal....aapko dhero sadhuwad..
बहुत उम्दा!! अच्छा लगा!
तह पड़ चुकी है गर्द की रिश्तों पे यहाँ यूँ,
पोछा गया तब कुछ नया ताज़ा सा दिखेगा।
...bahut khoob.
bahut bahut sundar gazal hai.....
अच्छी गज़ल कही है अंकित जी आपने
आप सभी लोगों का शुक्रिया उत्साहवर्धन के लिए. मैं कोशिश करूँगा अच्छी से अच्छी ग़ज़ल लिखूं.
- अंकित "सफर"
क्या बात है अंकित ...कहर बरपा दिया तुमने
बहुत सुंदर रचना
बहर में कहीं कहीं ढ़िलाव है...
मैंने हुनर में रख तराशा है एक संग जो...बहुत सुंदर बन पड़ा है
Post a Comment