20 November 2008

ग़ज़ल - सबका अपना अपना कहना

सबका अपना, अपना कहना।
कहते रहना, कहते रहना।
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ये कश्ती ही जाने है बस,
किस जानिब है उसको बहना।
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बात पता ये मुझको ना थी,
बिन तेरे है मुश्किल रहना।
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दिल में जो हैं दर्द पुराने,
वो चाहे बस दिल में रहना।
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सोच यही माँ बेचे जेवर,
मेरे बच्चे मेरा गहना।
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झूठ बड़ा होने से पहले,
लाजिम है फ़िर सच को कहना।
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बाबा ने एक बात सिखाई,
बेटा आगे बढ़ते रहना।

7 comments:

Himanshu Pandey said...

"झूठ बड़ा होने से पहले,लाजिम है फ़िर सच को कहना।.बाबा ने एक बात सिखाई,बेटा आगे बढ़ते रहना।"बड़ी गहराई से लिखी हुई पंक्तियाँ.

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत ही अच्‍छा भाई, काफी अच्‍छा लगा आपकी कविता पढ़कर, अच्‍छी सीख दे गये है।

Ashish Khandelwal said...

बहुत खूब अंकित.. शानदार कविता..

आलोक साहिल said...

bahut khub likha ankit bhai.
ALOK SINGH "SAHIL"

नीरज गोस्वामी said...

सोच यही माँ बेचे जेवर
मेरे बच्चे मेरा गहना
कमाल की रचना....लाजवाब जनाब...लिखते रहिये...
नीरज

Ankit said...

आप सभी लोगों का शुक्रिया.

गौतम राजऋषि said...

बहुत सुंदर अंकित...वाह

अच्छी बातें अच्छी सीखें
यूं ही गज़लें लिखते रहना