आप सभी को मेरा नमस्कार,
आज कहने को बहुत कुछ है मगर ये तय नही कर पा रहा हूँ, कैसे कहूं और क्या-क्या कहूं।
मैं पंतनगर उत्तराखंड से दो साल पहले "गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय" से कृषि स्नातक करके VAMNICOM, पुणे MBA करने आया और अब जाने का दिन आ गया है। इन दो सालों में बहुत कुछ पाया है मैंने। इस ब्लॉग की शुरुआत हुई (२८ जनवरी, २००८) को और फ़िर तो आप सब का प्यार मिलता रहा।
लिखता मैं पंतनगर से ही था मगर ग़ज़ल की बारीकियां नही मालूम थी, उन बारीकियों को मुझे सिखाने के लिए उस इश्वर ने मेरा परिचय एक फ़रिश्ते (
गुरु जी, पंकज सुबीर जी) से करवाया।
असल में इस मिलन का अपरोक्ष रूप से शुक्रिया जाता है
समीर लाल जी को, अब पूछेंगे वो कैसे?
वो ऐसे की, मैंने ब्लॉग पे अपनी बिन बहर की गज़लें लिखनी शुरू कर दी थी ब्लॉग्गिंग के जूनून में, एक दिन समीर लाल जी अपनी उड़न तश्तरी से मेरे ब्लॉग पे उतरे और एक टिपण्णी छोड़ के चले गए, अपने ब्लॉग पे पहली टिपण्णी पाकर उस व्यक्ति के बारे में जानने की इच्छा हुई और उनके ब्लॉग को पढ़ डाला। उसमे समीर जी ने ग़ज़ल की क्लास्सेस का ज़िक्र
किया था और पता था
पंकज सुबीर(गुरु जी)। बस आव देखा न ताव पूरे ब्लॉग को १ दिन में पूरा पढ़ डाला उसमे लगी टिप्पणियों समेट।
इन दो सालों में काफी लोगों से जान पहचान हुई इस ब्लॉग के ज़रिये. और मेरे आधे-अधूरे ज्ञान को गुरु का साथ मिला. इन दो सालों के बारे में एक नज़्म लिखी है जो कॉलेज और हॉस्टल की मस्ती से लबालब जीवन के बारे में है. ये नज़्म मैं अपने दोस्तों को समर्पित करता हूँ...........
सोचा ना था इतनी जल्दी वक्त जाएगा गुज़र।
लम्हों में बदल जाएगा दो साल का ये एक सफ़र।
जब कभी मैं सोचता हूँ दिन वो कॉलेज के हसी,
MBA का excitement और पुणे की मस्ती,
आया था मैं दूर घर से लेके कुछ सपने यहाँ,
अजनबी जो लगते थे बन गए अपने यहाँ,
फ़िर हुआ क्लास्सेस का चक्कर बातें वही घिसी पिटी,
मगर थी स्लीपिंग अपनी हॉबी सोने में सब वो कटी,
कुछ थे अपने check-points, रेड्डी सर और डी रवि,
हॉस्टल की timing, मुंडे जी और भोला जी,
याद आता है मनोहर, याद आती है टपरी,
maggi, चाय, सिगरेट अपनी सुपरमार्केट वही,
FC का भी चार्म था, इवेनिंग की outings,
छोटी-छोटी बातों पे कभी करी थी fightings,
खूब बने pairs यहाँ, lovers पॉइंट PMC,
पर अपना अड्डा tiger हिल, दारु, रम, बियर, व्हिस्की,
साल मजे में बीत गया और आया फ़िर summer,
ऐश के दो और महीने काट दिए रह के घर,
वापसी जब आए कॉलेज, नए मुर्गे जूनियर,
रात दिन लिए sessions लिए नाम पे इंट्रो के हमने,
रॉब के कुछ और महीने धीरे-धीरे लगे थे काटने ,
प्लेसमेंट लेके हुई पार्टी दारु रम की,
वैसे तो ये होती रहती मगर अलग थी बात इसकी,
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आ गया अब जाने का दिन, अलविदा ओ VAMNICOM.
जाने कब फ़िर आना होगा, अलविदा ओ VAMNICOM.
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PMC:- पिया मिलन चौराहा